SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामने रखकर पारिभाषिक शब्दों की व्याख्याएँ पद्य के रूप में की गई। जिसकी शैली अत्यन्त गूढ़ है और विषय भी संक्षिप्त है, जिससे आगम के रहस्य को सहज रूप में नहीं समझा जा सकता था। इसलिए कुछ समय पश्चात् आगम सूत्रों की व्याख्याएँ गद्य शैली में होने लगी। गद्यात्मक शैली में प्राकृत और संस्कृत दोनों ही प्रकार के प्रयोगों के आधार पर पद्यात्मक में प्रयुक्त भावों को स्पष्ट किया गया, जिसे चूर्णी कहा गया। इसके अनन्तर भाष्य, टीकाएँ एवं वृत्तियाँ लिखी गईं, जिनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रमुख व्याख्या ग्रंथ एवं ग्रंथकार __ आगम पर विविध व्याख्याएँ प्रस्तुत की गईं, वे सभी श्रमण संतों के प्रमुख नायकों के द्वारा की गईं। वे वास्तव में व्याख्याता थे, इसलिए उनके व्याख्यात्मक दृष्टिकोण में ज्ञान-विज्ञान के रहस्य समाविष्ट हो गए। उस व्याख्या साहित्य को निम्न भागों में विभक्त कर सकते हैं (१) नियुक्ति (निज्जुति), (२) भाष्य (भास), . (३) चूर्णी (चुण्णि), (४) वृत्ति, (५) टीका, (६) टब्बा, (७) अंग्रेजी अनुवाद, (८) हिन्दी गुजराती व्याख्याएँ। आचार्य सम्राट देवेन्द्र मुनि ने 'जैन आगम साहित्य-मनन और मीमांसा' में आगम के रहस्य को विशेष रूप से प्रतिपादित किया है, उन्होंने उनकी व्याख्याओं का भी परिचय दिया है। इससे पूर्व श्रमण संघ के आचार्यों ने आगमों पर विशेष प्रकाश डाला, उनकी व्याख्याएँ कीं। हिन्दी, गुजराती अनुवाद लिखे और आगमों को जनप्रिय बनाने की लिए विविध समालोचनात्मक निबन्ध लिखे। आचार्य घासीलालजी, आचार्य जवाहर, आचार्य तुलसी, आचार्य आनन्द ऋषि आदि के अतिरिक्त आ. जिनमणिसागरसूरि, महोपाध्याय विनयसागर, आ. महाप्रज्ञ, मुनि चंद्रप्रभसागर, मुनि ललितप्रभ सागर आदि ने भी सूत्र आगमों पर व्याख्याएँ लिखीं, इनके अंतरंग विषय को अनुसंधान की दृष्टि से कई साधु-साध्वियों ने शोध-प्रबन्ध लिखे। अतः यह तो निश्चित ही कहा जा सकता है कि आगम का व्याख्या साहित्य अब भी कुछ करने की ओर प्रेरणा दे रहा है, अतः इसकी गरिमा, महिमा एवं अध्ययन, पठन-पाठन की दृष्टि, जीवनचर्या का अंग बना रहे, जिससे आगम साहित्य की श्रीवृद्धि बनी रहे। . (१९) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy