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आगम की नियुक्तियाँ
पद्यात्मक शैली में सर्वप्रथम आगमों पर जो प्राकृत भाषा में नियुक्तियाँ लिखी गईं, वे मुख्य रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्याएँ हैं । निर्युक्ति सूत्र और अर्थ की व्याख्या करता है, जिससे निश्चय से अर्थ की युक्ति स्पष्ट होती है। कहा भी है—
निश्चयेन अर्थप्रतिपादिका युक्ति निर्युक्तिः ।
प्रमुख नियुक्तियाँ
(१) आचारांग निर्युक्ति, (२) सूत्रकृतांग निर्युक्ति, (३) दशवैकालिंक निर्युक्ति, (४) आवश्यक निर्युक्ति, (५) उत्तराध्ययन निर्युक्ति, (६) दशाश्रुत निर्युक्ति, (७) बृहद् कल्प निर्युक्ति, (८) व्यवहार निर्युक्ति, (९) सूर्यप्रज्ञप्ति निर्युक्ति, (१०) ऋषिभाषित निर्युक्ति । नियुक्तिकार के रूप में आ. भद्रबाहु का नाम विशेष रूप से लिया जाता है । जिनका समय वि. सं. ५६२ के लगभग है । इस महान् आचार्य ने अपनी ज्ञान चेतना से जो निर्युक्तियाँ लिखीं, वे अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं ।
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आगम का भाष्य साहित्य
भाष्यकार ने निर्युक्तियों के रहस्य को खोलने का प्रयास किया, उन्होंने अर्थ बाहुल्य को अभिव्यक्त करने के लिए प्राकृत एवं संस्कृत दोनों ही भाषाओं को आधार बनाया। आचार, विचार एवं व्यवहार की गम्भीरता को अभिव्यक्त करने के लिए सूक्तियाँ, लौकिक कथाएँ एवं दृष्टान्तों को भी समाविष्ट किया। जिन आगमों पर नियुक्तियाँ लिखी गईं, उन्हीं पर भाष्य नहीं लिखे गए, कुछ सूत्र ग्रंथों को छोड़कर भाष्यकारों ने जो भाष्य लिखे हैं, वे मूल सूत्रों पर हैं। भाष्य साहित्य के भाष्यकार जिनभद्रगणी और संघदास विशेष रूप से माने जाते हैं। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का समय वि. सं. ६५०-६६० के आस-पास का माना गया है। उनकी रचनाएँ निम्न मानी गई हैं
(१) विशेषावश्यक भाष्य — (प्राकृत),
(२) विशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञवृत्ति – (संस्कृत गद्य),
(३) बृहत्संग्रहणी – (प्राकृत पद्य),
(४) बृहत्क्षेत्र समास - ( प्राकृत पद्य),
(५) विशेषणवती — (प्राकृत पद्य),
(६) जीतकल्प - ( प्राकृत पद्य),
(७) जीतकल्प भाष्य - ( प्राकृत पद्य),
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आ. नि. १/२/१
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