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________________ (१) अंग साहित्य, (२) उपांग साहित्य, (३) मूल साहित्य, (४) छेद साहित्य। आगमों के प्रचलित नाम (क) अंग आगम (१) आचारांग,(२) सूत्रकृतांग, (३) स्थानांग,(४) समवायांग, (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति, (६) ज्ञातृधर्मकथांग, (७) उपासक दशांग, (८) अन्तकृद्दशांग, (९) अनुत्तरोपपातिक, (१०) प्रश्नव्याकरण, (११) विपाक सूत्र, (१२) दृष्टिवाद । (ख) उपांग आगम-(१) औपपातिक, (२) राजप्रश्नीय, (३) जीवाभिगम, (४) प्रज्ञापना, (५) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, (६) सूर्यप्रज्ञप्ति, (७) चंद्रप्रज्ञप्ति, (८) निरयावलिया, (९) कल्पावतंसिका, (१०) पुष्पिका, (११) पुष्पचूलिका, (१२) वृष्णिदशा। (ग) मूल सूत्र-(१) आवश्यक, (२) दशवैकालिक, (३) उत्तराध्ययन, (४) पिण्डनियुक्ति-ओघनियुक्ति (५) नन्दी, (६) अनुयोगद्वार। ___ (घ) छेदसूत्र-(१) निशीथ, (२) व्यवहार, (३) दशाश्रुत, (४) वृहत्कल्प, (५) महानिशीथ, (६) पंचकल्प।। आगमों में सभी प्रकार की कलाओं का समावेश है। उनमें मानव सभ्यता के आदिकाल की व्यवस्था, यौगलिक व्यवस्था, समाज-नीति, राजनीति, धर्मनीति, राष्ट्रीयता, कर्म की समीचीनता, आहारशुद्धि, मन की मूल शक्ति, ब्रह्मचर्य की वास्तविकता, शिक्षानीति एवं अन्य कई प्रकार की सामग्रियाँ देखने को मिलती हैं। उनके रहस्य का उद्घाटन आगमज्ञाता आचार्यों, ऋषियों एवं मनीषियों ने विविध व्याख्याएँ करके जो प्रतिपादन किया है, उससे जनसाधारण भी आत्मतत्त्व, परमात्मतत्त्व एवं वस्तुतत्त्व के यथार्थ को समझने में गौरवान्वित होता रहा है; क्योंकि सत्य तथ्य का दर्शन जैन आगमों की विशेषता है, उसी का अर्थ विश्लेषण, चिंतन की ओर प्रेरित करता है। जैन आगमों का व्याख्या साहित्य __व्याख्याकार आगम के मूल उद्देश्य को लेकर पाठक की जिज्ञासा को शांत करना चाहता है, इसलिए उसके उद्गम स्थान में प्रवेश करके व्याख्याकार, वृत्तिकार या टीकाकार उसमें सरित्प्रवाह की तरह क्रम-क्रम से शब्द-अर्थ, उनकी परिभाषाएँ, उनकी व्युत्पत्तियाँ, उनके भाव, उनके लाक्षणिक अर्थ आदि की विवेचन प्रकिया नए-नए रूप को प्रदान करती है, जिससे व्याख्या का क्रम समग्र भावों को अभिव्यक्त करने में समर्थ होता है। युग के अनुसार आगम ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए, उन्हीं पर व्याख्याकारों ने प्राकृत में व्याख्याएँ लिखीं, जिन्हें नियुक्ति कहा गया। नियुक्ति में मूल ग्रंथ को (१८) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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