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(३) गणितानुयोग,
(४) द्रव्यानुयोग। आगम स्वरूप एवं विश्लेषण
___ आगम भारतीय साहित्य की अनुपम निधि है, इनमें ज्ञान-विज्ञान का अनुपम एवं विराट स्वरूप है, इसके परिशीलन में साधना के स्वर, त्याग की भावना, वैराग्य की परिणति, संयम-साधना, आत्मा की शाश्वत सत्ता, इंद्रिय निग्रह आदि के स्वर आदि विद्यमान हैं, जिन्होंने इसको अर्थ रूप में प्रतिपादित किया, वे जितेन्द्रिय जिनेन्द्रदेव थे। उनके आत्म-साधना के स्वर प्राणी मात्र के लिए दिशा-निर्देश देते हैं। उन्हीं की आध्यात्मिक विचारणा के आधार पर आप्त वचन या सर्वज्ञ के वचन को आगम कहा गया है। आगम शब्द और उसकी सार्थकता
अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गन्थन्ति गणहरा निउणं । सासणस्स हियट्ठाए, तओ सुत्तं पवत्तइ। .
आप्त राग, द्वेष, मोह आदि से रहित होते हैं। उनके वचन में किसी तरह का विरोध नहीं होता, इसलिए उनके वचन अर्थरूप में प्रकट होते हैं। गणधरों के द्वारा उन्हें सूत्रबद्ध किया जाता है, इसलिए वे श्रुत सूत्र कहे जाते हैं और उन्हीं के वचन जिनशासन की प्रभावना के लिए आचार्यों द्वारा लिपिबद्ध किये जाते हैं। इसलिए आगम वचन को श्रुत या सूत्र कहते हैं। वृत्तिकार ने श्रुत को भगवत् वचन का अनुवाद कहा। वह वचन मांगलिक एवं श्रेय को प्रदान करने वाला है।'
सूत्र-श्रुत, ग्रंथ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आगम, आप्त वचन, ऐतिह्य, आम्नाय और जिनवचन ये सभी आगम के वाचक हैं। आगम शब्द की व्युत्पत्ति
"आ-समन्ताद् गम्यते वस्ततत्त्वमनेनेत्यागमः"६
अर्थात् आगम शब्द 'आ' उपसर्गपूर्वक 'गम्' धातु से निष्पन्न है अर्थात् जो पूर्णरूप से वस्तु तत्त्व का ज्ञान कराता है, वह आगम है। परमार्थ की दृष्टि से आप्त वचन से उत्पन्न अर्थ को आगम कहा जाता है, इससे वस्तु तत्त्व का विशेष स्थान एवं उत्कृष्ट अर्थ का संवेदन भी होता है। स्याद्वादमंजरी में कहा है
आप्तवचनादाविर्भूतअर्थसंवेदनमागमः । उपचारादाप्तवचनं च।
तीर्थकर, सर्वज्ञ, आप्त या जिनभगवान के उपदेश कथन, निरूपण या प्रवचन को जैनागम कहा गया। ये सभी वीतरागता के वचन पूर्वापरविरोध से रहित हैं। जिन्हें अंग बाह्य और अंग प्रविष्ट कहा गया। इन्हीं आगमों के अग्रांकित वर्गीकरण किए गए
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