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५. विरुद्ध रज्जाणी – जहाँ का राजा धर्म और साधुओं आदि के प्रति विरोधी है । उसका राज्य विरुद्ध राज्य कहलाता है, अथवा जिस राज्य में साधु भ्रान्ति से विरुद्ध (विपरीत) गमन कर रहा है, वह भी विरुद्ध राज्य है।
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६. विहं— कई दिनों से पार हो सके, ऐसा अटवी मार्ग । ५६
इस तरह से राजा के आधीन रहने वाले, राजपुरुषों, मंत्रियों आदि का उल्लेख हुआ हैं ।
रानियाँ
राजा, महाराजा, चक्रवर्ती आदि की प्रमुख रानियाँ भी शासन व्यवस्था के सूत्रधार हैं। रानी त्रिशला क्षत्रिय कुल के ज्ञातृ कुल की प्रमुख रानी थी। ५७ देवी धारणी, धार्मिक प्रवृत्ति वाली थी। जिसने अपने पिता से धार्मिक भावना प्राप्त की थी। राजाओं की अपेक्षा रानियों का उल्लेख कम ही हुआ है ।
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वृत्तिकार ने आचारांग के विश्लेषण में राजा, युवराज, महत्तर, अमात्य और कुमार – इन पाँच लौकिक नायकों का कथन किया है । वृत्तिकार ने नायक शब्द का ही प्रयोग किया है । ५९ आचार्य उपाध्याय, प्रभूति, स्थिविर और गणावच्छेदक — इन पाँच स्थानों को लौकोत्तर नायक कहा है । ६° राजा, राजपुत्र, युवराज आदि के कार्य, सभामण्डप, नगर, वंश, कर्म, नीति, परिषद् आदि भी शासन व्यवस्था के मूल सूत्र हैं ।
राज्य की शासन-व्यवस्था में दण्ड व्यवस्था का भी महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । दण्ड को न्याय-व्यवस्था का प्रमुख अङ्ग माना जाता है । परन्तु दण्ड को उस रूप में नहीं लिया गया है क्योंकि यह आचार सम्बन्धी ग्रन्थ आचार शास्त्र की दृष्टि से योग ही दण्ड का परिचायक है, जिसका उल्लेख आचारांग सूत्र के नये अध्ययन उपधान सूत्र में हुआ है। महावीर अनार्य पुरुषों के द्वारा सताये जाते हैं उन पर विविध उपसर्ग होते हैं, पर वे दण्ड की इच्छा नहीं करते हैं । अपितु अपनी इन्द्रिय और मन को वश में करने के लिये यौगिक दण्ड को स्वयं स्वीकार कर लेते हैं । ६१
न्याय-व्यवस्था में न्यायाधीश द्वारा दण्डित किया जाता है परन्तु यहाँ उसका भी उल्लेख नहीं है ।
शासन व्यवस्था के लिये सैनिक व्यवस्था की भी आवश्यकता होती है। युद्ध का उल्लेख आचारांग सूत्र में हुआ है। उसमें भैसों का युद्ध, सांडों का युद्ध, अश्व युद्ध, हस्ति- युद्ध, कपिंजर - युद्ध आदि का उल्लेख है । ६३
सामाजिक व्यवस्था
वर्ण, जाति, परिवार, कुटुम्ब, उत्सव, रीति-रिवाज आदि उसके अन्तर्गत आते हैं । शीलंक आचार्य ने अपने युग के अनुसार आचारांग वृत्ति में जो भी विवेचन किया है उसको संक्षिप्त रूप में यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा
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आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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