________________
आस्रव तत्त्व के प्रकार
१. द्रव्यास्त्रव और २. भावास्रव ।
आस्रव के कारण
१. मिथ्यात्व, २ . अवरति, ३. प्रमाद, ४. कषाय और ५. योग ।
बन्ध तत्त्व
| बन्ध
कर्म परमाणुओं का आत्म प्रदेशों के साथ सम्बन्ध हो जाना बन्ध है का अर्थ है जुड़ना । जीव के प्रत्येक कर्म द्वारा किसी न किसी प्रकार की ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है जो अपना कुछ न कुछ प्रभाव दिखाए बिना नहीं रहती और साथ ही जीव की स्वतन्त्रता भी कुंठित नहीं होती है। आत्मा के साथ पुद्गलों का यह मेल दूध और पानी की तरह एकाकार है । जैसे—दूध और पानी एक दूसरे में मिल जाते हैं, उनको पृथक् कर पाना कठिन होता है, इसी तरह आत्मा और पुद्गल पृथक् होते हुए भी एक दूसरे से इतने मिल जाते हैं कि उन्हें पृथक् करना संभव नहीं है 1 वृत्तिकार ने बन्ध को कई दृष्टियों से प्रतिपादित किया है। उसी दृष्टि को ध्यान में रख कर कुछ संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है
बन्ध के कारण - '
४
१. मिथ्यात्व, २. अवरति, ३. प्रमाद, ४. कषाय और ५.
तत्व के
१. प्रकृति बन्ध, २. स्थिति, ३. अनुभाग और ४. प्रदेश बंध ।
·
वृत्तिकार ने बन्ध, उदय और सत्ता की अपेक्षा से बन्ध के सप्त भंग इस प्रकार किये हैं
१. नीच गोत्र का वन्ध-नीच गोत्र का उदय और नीच गोत्र की सत्ता । २. नीच गोत्र का बन्ध-नीच गोत्र का उदय और उभय की सत्ता । ३. नीच गोत्र का बन्ध - उच्च गोत्र का उदय और उभय की सत्ता । ४. उच्च गोत्र का बन्ध-नीच गोत्र का उदय और उभय की सत्ता । ५. उच्च गोत्र का बन्ध— उच्च गोत्र का उदय और उभय की सत्ता । ६. बन्धाभाव – उच्च गोत्र का उदय और उभय की सत्ता ।
- उच्च गोत्र का उदय और उच्च की सत्ता ।
१६०
७. बन्धाभाव
बन्ध के अन्य भेद
१. शुभ और २. अशुभ ।
Jain Education International
योग ।
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org