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संसार की अपेक्षा से भी शीलांकाचार्य ने जीव के विवेचन को कई रूपों में प्रस्तुत किया है। उन्होंने ज्ञान और दर्शन इन दो उपयोग को ही आधारभूत विषय बनाकर जीव का वर्णन किया है। ज्ञान की दृष्टि से पाँच ज्ञान और कर्म की दृष्टि से बन्ध योग जीवों के प्रकाशों का भी उल्लेख किया है। कषाय का आदि की दृष्टि से भी जीव का विवेचन प्रस्तुत किया है। प्रमाण, नय, निक्षेप आदि को दार्शनिक दृष्टि से विषय की गंभीरता को प्रकट करने के लिए आधार बनाया गया है। लोक-व्यवस्था
लोक शब्द का अर्थ है-संसार या जगत। इस विषय में दार्शनिकों का अपना-अपना मत है। सभी ने संसार को किसी ने किसी रूप में अवश्य माना है। बौद्ध-दर्शन में दुःख तत्त्व की प्रधानता है। संसारी स्कन्ध का नाम दुःख है।
पाँच स्कन्धों से संक्षरण होता है। विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार और रूप ये सभी एक स्थान से दूसरे स्थान को तथा एक भव से दूसरे भव को जाते हैं। अतः संक्षरण धर्मा यह संसार है । न्याय, वैशेषिक-दर्शन जगत को कर्तव्य रूप में स्वीकार करते हैं, उनका कहना है कि दृश्यमान जगत ईश्वर के द्वारा बनाया गया है। इस चर-अचर रूप जगत का निर्माण तथा उसका संहार ईश्वर द्वारा होता है। जैसे-पृथ्वी, पर्वत, चन्द्र, सूर्य, समुद्र, घट आदि किसी न किसी बुद्धिमान के द्वारा बनाए गए हैं। इसी तरह जगत भी बनाया है। सांख्य और योग दर्शन जगत को मानते हैं। वे इसे संसरण रूप कहते हैं। संसार जन्म और मरण रूप है। इसी तरह अन्य दर्शन भी इस विषय में अपने विचार व्यक्त करते हैं।
__जैन-दर्शन की दृष्टि से जगत छ: द्रव्यों का समुदाय है। अर्थात् जहाँ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल-इन छः द्रव्यों का समुदाय है वह जगत है, विश्व या लोक इसी को कहते हैं। जैन दर्शन का जगत किसी ईश्वर द्वारा नहीं बनाया गया है, वह स्वतःसिद्ध है। जीव और अजीव द्रव्यों के साथ धर्म-अधर्म, आकाश और काल इन द्रव्यों का भी अस्तित्व रहता है। इनमें से एक भी द्रव्य के अभाव होने पर संसार नहीं रहेगा। लोक का स्वरूप
- "लोकयतीति लोकः"८२ . अर्थात जहाँ द्रव्य आदि का अवलोकन किया जाता है उसे लोक कहते हैं। आकाश के जितने प्रदेश हैं, जीव पुद्गल आदि षड्द्रव्यों का जहाँ अवलोकन होता है वहाँ तक लोक होता है । अर्थात् षड्द्रव्यों के समुदाय को लोक कहते हैं । आचारांग सूत्र के लोक विषय अध्ययन में जीव के अस्तित्व की तरह लोक के अस्तित्व को स्वीकार करने के उपरान्त लोक का एक नया ही स्वरूप प्रतिपादित किया है। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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