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सत्
सत् की अपेक्षा में सत्ता सभी जीवों में पाई जाती है । सम्यक्त्व गुण केवल अन्य जीवों में ही पाया जाता है। सत् संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्प बहुत्व से भी जीव का विवेचन किया जाता है। सत् सभी पदार्थों की होती है । इसलिए जीव की संज्ञा है ।
द्रव्य गुण और पर्याय
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"गुणपर्यायवद् द्रव्यम्”
अर्थात् द्रव्य गुण पर्याय वाला है । वृत्तिकार ने द्रव्य, गुण और पर्याय का विवेचन करते हुए कथन किया है कि द्रव्यों के आश्रित गुण और पर्याय होते हैं । द्रव्य में जो परिणाम शक्ति पाई जाती है, वह गुण कहलाता है। और गुण जन्य परिणाम पर्याय कहलाता है । गुण कारण है, और पर्याय कार्य है । द्रव्य पर्याय को छोड़कर नहीं रह सकता है । इसलिए द्रव्य उत्पाद, स्थिति और भंग इन तीन रूप है । ७४ द्रव्य गुण और पर्याय का भेद और अभेद की अपेक्षा से भी वृत्तिकार ने विस्तार से विवेचन किया है ।
उत्पाद व्यय और भंग
जीव या अजीव दोनों ही द्रव्य उत्पाद, स्थिति और भंग रूप हैं । जीव किस पर्याय में है और किस पर्याय को प्राप्त होगा, यही उत्पाद, स्थिति और भंग रूप व्यवस्था प्रत्येक वस्तु के साथ घटित होती है । बालक ने जन्म लिया, यह बालक रूप जन्म, जीव का उत्पत्ति होना और जिस पर्याय से आया है, वह भंग रूप जीव है। जीव था, जीव है और आगे भी रहेगा, यह जीव की स्थिति है 1
जीव या आत्मा के विषय में विविध दार्शनिकों के विचार प्रस्तुत किये गये । उनसे यह स्पष्ट होता है कि जीव कई रूप में है, उसके कई भेद हैं । उसमें ज्ञान गुण भी पाया जाता है। जैन दार्शनिक दृष्टि में जीव चैतन्य है, उसका गुण ज्ञान है । यह ज्ञान गुण आगन्तुक गुण नहीं है अपितु आत्मा का निज स्वभाव है । शीलांकाचार्य ने अपनी वृत्ति में जीव के विषय को विभिन्न रूपों में घटित करके उसकी सिद्धि की है। जीव के विभाजन को गुणों की अपेक्षा सामान्य-विशेष अवयव - अवयवी उत्पाद स्थिति भंग भेद एवं अभेद आदि की दृष्टि से भी उसका विवेचन किया है । गुण की अपेक्षा से भी उसका विवेचन करते हुए जीव के कई गुण प्रस्तुत किये हैं । उन गुणों के अनुसार उनका विस्तृत विवेचन भी आचारांग वृत्ति में किया गया है – (१) क्षेत्र गुण, (२) काल गुण, (३) फल गुण, (४) पर्यव गुण, (५) गणना गुण, (६) करण गुण, (७) अभ्यास गुण, (८) गुणागुण, (९) अवगुण, (१०) भवगुण, (११) शीलगुण, (१२) भाव गुण।७५ भाव गुण की अपेक्षा से औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक६ दृष्टि से जीव का विवेचन किया गया है।
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आचाराङ्ग- शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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