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________________ जिस प्रकार नवीन गर्भ में उत्पन्न हाथी का शरीर कलल अवस्था में द्रव रूप होता है। किन्तु वह सचेतन है, उसी तरह द्रव रूप जल भी सचेतन है । सात दिन तक हाथी का शरीर गर्भ में कलल रूप रहता है। बाद में उसमें कठोरता आती है । तो सात दिन तक कलल जिस तरह सचित समझा जाता है उसी प्रकार द्रव्यात्मक जलकाय को भी सचित समझना चाहिए तथा जिस प्रकार अण्डे में रहा हुआ पानी सचित है उसी तरह जल भी सचित है । ६७ 1 अनुमान से जल की प्रामाणिकता सिद्ध की गई है । चार्वाक पञ्चभूत तत्त्वों को मानता है । वह पञ्चभूतात्मक शरीर में ही चैतन्य गुण मानता है । इसके अतिरिक्त वह कुछ नहीं मानता है। यह कथन ठीक नहीं है; क्योंकि पञ्चभूत स्वयं जड़ अतः वे चैतन्य कैसे हो सकते हैं । ६८ हैं जीव का नय दृष्टि से विवेचन नय के कई भेद किये जाते हैं । आचार्य शीलांक ने षड्काय जीव के विवेचन को नय दृष्टि से भी प्रतिपादित किया है। उन्होंने इसी दृष्टि से ज्ञान नय और चरण नय— इन दो नयों का विवेचन करके जीव के अस्तित्व का विवेचन किया है । समन्वय के आधार पर जीव सम्बन्धी दो अध्यवसाय निर्मित होते हैं ९ - १. जीव है - यह अभेद प्रधान अध्यवसाय है । २. जीव ज्ञानवान है - यह भेद प्रधान अध्यवसाय है । 1 जीव में चैतन्य नाम का विशिष्ट गुण होता है जो अजीव में नहीं पाया जाता है। प्रत्येक जीव में अनन्त धर्म होते हैं, जिनका विवेचन नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा भूतनय - इन सात नयों की अपेक्षा से जीव का विवेचन किया जाता है। ७० जीव का प्रमाण की दृष्टि से विवेचन चैतन्य जीव का स्वभाव है। ज्ञान आत्मा का गुण है । इसलिए वह ज्ञान को प्रमाण मानता है । अज्ञान के अभाव से ज्ञान की उपलब्धि होती है । इसलिए ज्ञान प्रमाण है । जीव ज्ञान है और ज्ञान आत्मा है, आत्मा से पृथक् नही हैं । अतः प्रमाण से भी जीव है। १ I 1 जीव की निक्षेप व्यवस्था Jain Education International वृत्तिकार ने सम्पूर्ण विवेचन को निक्षेप पद्धति पर केन्द्रित करके समग्र विवेचन को प्रस्तुत किया है । निक्षेप विशिष्ट शब्द प्रयोग की पद्धति है । जैसे- - नाम जीव, स्थापना जीव, भाव जीव, इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि नाम मनुष्य, स्थापना मनुष्य द्रव्य मनुष्य और भाव मनुष्य । २ जीव है, जीव रहेगा या जीव था - यह सब जीव के नाम आदि निक्षेप का कथन करता 1 आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन For Personal & Private Use Only १३५ www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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