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अभाव में प्राणियों को यह ज्ञान नहीं होता है कि मेरा आत्मा पूर्व दिशा से आया है या दक्षिण दिशा से या पश्चिम दिशा से या उत्तर दिशा से या अन्य किसी दिशा से आया है । ४५ शीलांक की वृत्ति में विविध प्रकार की संज्ञाओं का विवेचन किया गया है । संज्ञा का अर्थ भी दिया गया है ।
संज्ञा का अर्थ है चेतना । वह भी दो प्रकार की है- १. ज्ञान चेतना और २. अनुभव चेतना । ४६ अनुभव चेतना प्रत्येक प्राणी में रहती है। ज्ञान - चेतना विशेष बोध, किसी में कम विकसित होती है और किसी में अधिक विकसित होती है। अनुभव चेतना के १६ भेद गिनाये हैं और ज्ञान चेतना के ५ भेद किये हैं ।
जीव चेतनायुक्त है, भारतीय दर्शन की प्रत्येक परम्परा उसे स्वीकार करती है; किन्तु अतीत और भविष्य के अस्तित्व में सब विश्वास नहीं करते हैं । जो चेतन की त्रैकालिक सत्ता में विश्वास रखते हैं, वे आत्मवादी होते हैं, वे आत्मा या जीव दोनों को एक ही मानते हैं । आत्मा जीव है, चेतनायुक्त है। उपयोग लक्षण वाला है।
शांकाचार्य ने जो प्राण को धारण करता है उसे जीव कहा है और उसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की है कि जो जीवित था, जीवित है तथा आयु कर्म से जीवित रहेगा वह जीव है।" अन्य आगम ग्रन्थों में उक्त व्युत्पत्तिपूर्ण परिभाषा दी गई है। जो चार प्राणों से जीता है या दश प्राणों से जीता है, जियेगा और जो पहले जीता था वह जीव है। ४९ आचार्य हरिभद्र सूरि ने “ चेतना लक्षणो जीवः” यह परिभाषा दी है। जिसमें जानने-देखने की शक्ति पाई जाती है वह जीव है । ° प्राण, भूत, जीव और सत्व- ये जीव के ही वाचक हैं ।
जीव के विषय में आचारांग सूत्र की दृष्टि प्रारम्भ से लेकर अन्त तक सम्पूर्ण विश्व के जीवों पर केन्द्रित रही है । इसमें वनस्पति, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु-इन पाँच वस्तुओं में जीव की सत्ता स्वीकार करते हुए इनके संरक्षण पर इनके बचने के लिए और इनके स्थायित्व के लिए बार-बार उपदेश दिया गया है। जो नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा पृथ्वी कर्म आदि की क्रियाओं में संलग्न होकर उनका वध, बन्धन, छेदन, भेदन आदि की क्रियाओं को करते हैं वे अपना ही अहित करते हैं । ५१
आचारांग के मूल उद्देश्य को ध्यान में रखकर वृत्तिकार ने अपनी दृष्टि सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्त्वों पर ले जाकर प्राणियों के चेतन स्वरूप का वैज्ञानिक पक्ष भी प्रस्तुत किया है । आगमों में जीवों के चेतन स्वरूप को एकेन्द्रिय तक सीमित करके अपनी बात को समाप्त नहीं कर दिया, अपितु अन्य प्राणी मात्र का विवेचन भी किया है ।
आगमों में जीवों के अनेक प्रकार बतलाये हैं, उनमें से दो भेद आचारांग सूत्र और आचारांग वृत्ति में प्रमुख रूप से गिनाये हैं । संसारी जीवों की अपेक्षा जीव
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आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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