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________________ के लिए उसे अपनी प्राचीन दार्शनिक मान्यताओं को सामने रखना पड़ता है। आचारांग का “आयावादी लोयावादी-कम्मावादी किरियावादि” नामक सूत्र मूलतः इन चार दर्शन तत्त्व की मीमांसा करता है। आयावादी में आत्म दर्शन की, लोयावादी में लोक दर्शन (चार्वाक) की, कम्मावादी में कर्म की विवेचना और किरियावादी में क्रिया का अर्थात् कर्म के निमित्त से होने वाली क्रियाओं का उल्लेख किया गया है। सूत्रकृतांग में स्वागम-परागम के विश्लेषण के साथ १. क्रियावाद, २. अक्रियावाद, ३. नियतिवाद, ४. अज्ञानवाद, ५. जगतवाद, ६. कर्तृत्ववाद जैसे विचार व्यक्त किये गये। आगमों में चार एवं छ: दार्शनिकों के अतिरिक्त ३६३ मत-मतान्तरों का उल्लेख मिलता है। इसके अनन्तर मूल आगम ग्रन्थों के ऊपर जो व्याख्याएँ लिखी गईं, उनमें इन दार्शनिक मान्याताओं के अतिरिक्त दर्शन जगत के प्रसिद्ध न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, चार्वाक दर्शन, बौद्ध दर्शन एवं सांख्य दर्शन आदि का उल्लेख है। आगमों में क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानवादियों के ६७ और वैशेषिकों के ३२ भेद गिनाये गये हैं। उक्त चारों दार्शनिकों के कुल मिलाकर ३६३ भेद बताये गये हैं। उक्त क्रियावादी दार्शनिक आदि के भेदों को अलग-अलग रूप में प्रतिपादित किया गया है- १. जीव के काल की अपेक्षा से ४ भेद और २. नियति के ४ भेद, ३. स्वभाव के ४ भेद, ४. ईश्वर के ४ भेद और ५. आत्मा के ४ भेद । ये सभी जीव के २० भेद दार्शनिक हैं। अजीव के २०, पुण्य के २०, पाप के २०, आश्रव के २०, संवर के २०, निर्जरा के २०, बन्ध के २० और मोक्ष के २०, कुल १८० भेद क्रियावादियों के हैं। इसी तरह के अन्य भेदों का उल्लेख आगमों में आया है। आचारांग के वृत्तिकार ने उक्त मतों का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त कालवादी, नियतिवादी, स्वभाववादी, ईश्वरवादी, आत्माद्वैतवादी, अज्ञानवादी, विनयवादी, एकान्तवादी के नामों का उल्लेख भी आचारांग वृत्ति में किया गया है। आत्मवाद, कर्मवाद, ज्ञानवाद, मोक्षवाद, परिणानित्यवाद, अनेकान्तवाद, सत्कार्यवाद, असत्कार्यवाद, स्वतःप्रामाण्यवाद, परतःप्रामाण्यवाद प्रतीत्यसमुत्पाद, भौतिकवाद (चार्वाकवाद), अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद, द्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, अचिन्त्यभेदाभेदवाद, शून्यवाद, नितानावाद, स्याद्वाद, परमाणुवाद (वैशेषिक), स्फोटवाद, नयवाद, अनात्मवाद, अध्यासवाद, ईश्वरवाद, निरीश्वरवाद, सन्तानवाद, विवर्तवाद, निक्षेपवाद, प्रतिबिम्बवाद, अक्रियावाद, नियतिवाद, अकृततावाद, अनिश्चिततावाद, उच्छेदवाद, निह्नववाद, बहुरतवाद, जीवप्रादेशिकवाद, अव्यक्तवाद, सामुच्छेदिकवाद, द्वैक्रियवाद, त्रैराशिकवाद, अवद्धिकवाद, ढाई हजार वर्ष पूर्व के स्फुट दार्शनिकवाद इत्यादि कई दार्शनिकों का उल्लेख भारतीय दर्शन के प्रमुखवाद नामक पुस्तक में किया गया है। १२२ आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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