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________________ आदि आचार्यों की भाष्य विवेचना तर्क-संगत है। उसी तर्क पर दार्शनिक विषय प्रकट हुआ है। सातवीं और आठवीं शताब्दी के बाद भी आचार्य हरिभद्र सूरि जैसे प्रकाण्ड दार्शनिक ने आगमों पर टिप्पणी लिखते हुए जो दार्शनिक पक्ष प्रस्तुत किये हैं, वे सभी दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं। आचार्यों द्वारा आगमों पर जो व्याख्याएँ लिखी गई हैं, उनमें युग की माँग के अनुसार भारतीय संस्कृति में व्याप्त विविध मत-मतान्तरों के विषयों का उद्घाटन हुआ है। उन्होंने जो भी प्रयास आगमों के आधार पर किये हैं वे निश्चित ही दर्शानिक जगत के मार्गदर्शक हैं, उससे नए-नए चिन्तन भी सामने आए हैं। भारतीय दर्शन की विचारधारा मूलतः आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित भारतीय दर्शन सभी दर्शनों में सर्वोपरि है। भारत में दर्शन-शास्त्र मूलभूत रूप से आध्यात्मिक है। दर्शन-शास्त्र के संस्थापकों ने देश के सामाजिक एवं आध्यात्मिक सुधार का प्रयास भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही किया, इसलिए दर्शन की प्रगति के साथ-साथ नये-नये विचारों का आदान-प्रदान भी हुआ। उन्हीं से कई मत-मतान्तरों ने आध्यात्मिक जीवन की गहराइयों में हलचल उत्पन्न कर दी। भारतीय विचाराधारा के इतिहास में निःसंदेह ये बड़े बहुत महत्त्वपूर्ण क्षण रहे हैं। आन्तरिक कसौटी और अन्तरदृष्टि के क्षण आत्मा की पुकार पर मनुष्य का मन एक नये युग में पग रखता है और एक नये साहसिक कार्य पर चल पड़ता है। दर्शन का सत्य जन-साधारण के दैनिक जीवन से घनिष्ट सम्बन्ध रखता है तथा धर्म तत्त्व को सजीव और वास्तविक बनाता है। भगवान महावीर और बुद्ध के समय में चिन्तन की धाराओं ने अनेक रूप धारण किये। श्रमण परम्परा में अनेक वाद प्रचलित हुए। इन वादों में बौद्ध परम्परा, वैदिक परम्परा और जैन परम्परा अर्थात् श्रमण परम्परा की विचाराधाराओं ने भी अपने पैर जमाए। आगम के नये-नये संदर्भ सामने आए। तत्त्व चिन्तन के विषय दर्शन पर आधारित हुए। सम्पूर्ण प्रस्तुतीकरण में एक नये अध्याय का प्रारम्भ किया। तत्त्व चिन्तन ने विचारकों के विचारों में जो मोड़ दिया, वह खुलकर अभिव्यक्त हुआ। जीव, जगत आदि के दार्शनिक रूप ने क्रान्तिकारी कदम उठाए। परिणामस्वरूप तत्त्व चिन्तन ने वादी-प्रतिवादी का जमघट तैयार कर दिया। वस्तु तत्त्व के विवेचन में जो तर्क-वितर्क उत्पन्न हुआ, उसकी पहचान बनी। उसी पर आधारित सभी कुछ विवेचन प्रस्तुत किया जाने लगा। - जैन दर्शन का विकास-क्रम चार युगों में विभक्त किया जा सकता है१२० आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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