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________________ वाले ग्रन्थ हैं। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति जैसे ग्रन्थ भूगोल और खगोल के विषयों की जानकारी देने वाले आगम हैं । उपासकों की उपासना उपासक दशांग में है । दृष्टान्त एवं कथात्मक शैली का केन्द्रबिन्दु णायाधम्मकहा है। शुभ और अशुभ विपाक की परिणति विपाक सूत्र में है । व्याख्या - प्रज्ञप्ति में महावीर के संवादों का संग्रह है । जहाँ उक्त सभी आगम विविध विषयों के विवेचन को प्रस्तुत करने वाले हैं, वहाँ उनमें दर्शानिक तत्त्वों की भी भरमार है । आचारांग, सूत्रकृतांग, व्याख्या प्रज्ञप्ति, स्थानांग, समवायांग, प्रज्ञापना, नन्दी सूत्र, अनुयोग द्वार एवं राज प्रश्नीय आदि आ मुख्य रूप से दर्शानिक सिद्धान्तों से परिपूर्ण हैं, जिनमें क्रियावादी, अक्रियावादी, आत्मवादी, अनात्मवादी, विज्ञानवादी आदि कई मत-मतान्तरों की दृष्टि है । भूतवादी, ब्रह्मवादी, विनयवादी एवं नास्तिक दृष्टि आदि का भी विवेचन आगमों में है । आचारांग सूत्र के प्रारम्भिक अध्ययन के प्रारम्भिक सूत्र न. (५) में आयावादी, लोयावादी, कम्मावादी, क्रियावादी; इन चार विचारधाराओं का उल्लेख दर्शन की प्राचीनता सिद्ध करता है । सूत्रकृतांग का स्वमत और परमत विवेचन पूर्णतः दर्शानिक शैली पर आधारित है, जिसमें चार्वाक के पञ्चभूत तत्त्वों का निराकरण किया गया है। इसी में नानात्मकवाद, जीव और शरीर की पृथकता एवं जगत की उत्पत्ति आदि पर प्रकाश डाला गया है। व्याख्या प्रज्ञप्ति में नय-प्रमाण आदि के अमुक दार्शनिक पक्ष सर्वत्र बिखरे पड़े हैं । स्थानांग और समवायांग सूत्र की शैली बौद्धों के अंगुत्तर निकाय में भी मिलती है, जिसमें आत्मा, पुद्गल, ज्ञान, नय और प्रमाण आदि की चर्चा दार्शनिक दृष्टि से की गई है। अनुयोगद्वार में शब्दार्थ विश्लेषण के साथ प्रमाण और नय के पक्ष को प्रस्तुत किया गया है। नन्दी-सूत्र ज्ञान के दार्शनिक पक्ष को सूक्ष्म दृष्टि से प्रस्तुत करता 1 आगमों के व्याख्याकारों ने आगमों की व्याख्या में सिद्धान्त विश्लेषण के साथ जो दार्शनिक दृष्टि प्रस्तुत की है वह अनुसंधान से अछूती है । आचारांग सूत्र से लेकर जितने भी आगम हैं उन सभी पर व्याख्याकारों ने जो व्याख्याएँ की हैं उनमें तत्त्व को नय और निक्षेप पद्धति पर घटित करके उसकी सूक्ष्मता का विवेचन भी किया गया है 1 . आचारांग वृत्ति दार्शनिक पक्ष की पृष्ठभूमि पर ही आधारित है । शीलांकाचार्य ने आचारांग वृत्ति में आचार-विचार की भूमिका के साथ प्रत्येक सूत्र को स्पष्ट करने के लिए नय पद्धति, निक्षेप पद्धति, भंग दृष्टि और प्रमाण दृष्टि को केन्द्रबिन्दु बनाया है । उसी के आधार पर रहस्य को स्पष्ट किया है । आचारांग वृत्ति, चूर्णि आदि में अधिकांशतः दार्शनिक चर्चाएँ उभर कर सामने आई हैं । नियुक्तियों में भद्रबाहु स्वामी ने अनेक स्थलों पर दार्शनिक चर्चाएँ बड़े सुन्दर ढंग से की हैं। उनमें बौद्धों और चार्वाक दर्शन के मतों का उल्लेख किया है। आत्मसिद्धि के विविध चरणों अर्थात् प्रमाण, नय और निक्षेप आदि के विषय से परिपूर्ण दृष्टि है । संघदास गणि, जिनभद्र आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन ११९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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