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________________ आचारांग वृत्ति का दार्शनिक अध्ययन आगम श्रमण संस्कृति के महानतम ग्रन्थ हैं, जिनको अर्थ रूप में आप्त द्वारा प्रतिपादित किया गया है। इसलिए आप्त के वचनादि से होने वाले पदार्थों के ज्ञान को आगम कहते हैं। आप्त के मुख से निसृत वचन पूर्वापर विरोध से रहित होते हैं। उनका वचन वादी, प्रतिवादी के द्वारा खंडित नहीं किया जा सकता है। उनके वचनों का विरोध आगम प्रमाण, प्रत्यक्ष प्रमाण या अनुमान आदि प्रमाण के द्वारा भी खंडित नहीं किया जा सकता है; क्योंकि आगम सत्यार्थ के स्वरूप को प्रतिपादित करने वाले होते हैं। आप्त के वचन न्यूनता बिना, अधिकता बिना, विपरीतता बिना यथातत्त्व वस्तुस्वरूप को निःसंदेह रूप से प्रतिपादित किया गया है। आगम सिद्धान्त एवं प्रवचन आप्त के वाक्य के अनुरूप हैं। उसमें रागादि द्वेष नहीं, उनके वचनों में कोई ऐसा कारण नहीं पाया जाता है कि जिससे यह कहा जाए कि आगम तत्त्वार्थ दृष्टि से परे हैं। .. आगम का अर्थ आप्त प्रतिपादित है। सूत्ररूप में गणधरों द्वारा उसे निरूपित किया गया और विचारकों द्वारा उसकी उपयोगिता बनाये रखने के लिए विस्तृत विवेचन के साथ, वक्ता-श्रोता की दृष्टि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है। आगम अनादि हैं, केवली द्वारा कथित हैं, अतिशय बुद्धि के धारक गणधरों द्वारा प्रतिपादित हैं। ये वस्तु तत्त्व के अभिप्राय को व्यक्त करने वाले हैं। आगम मूलतः दो रूपों में हैं-(१) अर्थ आगम और (२) सूत्र आगम। उन्हीं आगमों में अङ्ग आगम, अङ्ग बाह्य आगम, उपांग, छेद सूत्र, मूल सूत्र आदि आगम हैं, जिनका पूर्व में विवेचन प्रस्तुत कर दिया गया है। आगमों के संरक्षण के लिए महावीर निर्वाण के बाद विविध वाचनाएँ की गईं। उनसे आगम का संरक्षण प्रारम्भ हुआ। परिणामस्वरूप अङ्ग, उपांग, छेद सूत्र, मूल सूत्र आदि लिखित रूप में प्रस्तुत किये गये। आगमों की मूल विशेषता आचार संहिता को प्रस्तुत करना रहा है। परन्तु आगम भूगोल-खगोल, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, प्राचीन वास्तुकला आदि की विशेषताओं के विश्लेषण करने वाले भी ग्रन्थ हैं। आचारांग, दशवैकालिक जैसे मुनि की आचार-विचार की प्ररूपणा करने ११८ आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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