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विमुक्ति का अर्थ है बन्धनों से छुटकारा । सामान्य अर्थ में विमुक्ति का अर्थ है व्यक्ति जिस द्रव्य से बँधा हुआ है उससे छूट जाना । जैसे - बेड़ियों से जकड़ा हुआ व्यक्ति विमुक्त होता है तब वह बेड़ियों के बन्धन से मुक्त कहलाता है। यह बन्धन द्रव्य बन्धन कहलाता है, भाव बन्धन नहीं । भाव बन्धन कर्मों के क्षय से होता है । वृत्तिकार ने द्रव्य-मुक्ति और भाव-मुक्ति की विवेचना करते हुए यह कथन किया है कि जो भावों से विमुक्त है उस विमुक्त व्यक्ति को विमुक्ति होती है । देश विमुक्त साधु होता है और सर्व विमुक्त (आठ प्रकार के कर्मों से रहित) सिद्ध होते हैं । २८३
भावमुक्ति यहाँ अष्टविध कर्मों के बन्धनों को तोड़ने के अर्थ में है और वह अनित्यत्व आदि भावना से युक्त होने पर ही संभव होती है । २८४ भाव-मुक्ति साधुओं की भूमिका है। वह दो प्रकार की कही गई है - १. देशतः और २. सर्वतः ।
विमुक्ति अध्ययन में पाँच अधिकार पाँच भावनाओं के रूप में प्रतिपादित हैं—१. अनित्यत्व, २. पर्वत, ३. रूप्य, ४. भुजंग और ५. समुद्र ।
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अनित्य भावना बोध महाव्रतों का सूचक है । पर्वत की उपमा परिषह सहन की प्रेरणा देने वाला है। रूप्य का दृष्टान्त कर्म मल शुद्धि का कथन करने वाला है 1 भुजंग दृष्टान्त द्वारा बन्धन मुक्ति की प्रेरणा दी गई और समुद्र के माध्यम से संसार सागर को पार होने की शिक्षा दी गई है।
इस तरह इस अध्ययन में मूलोत्तर गुणों के घाती को विमुक्त, परिज्ञाशील, सत-असत का विचारक, परिज्ञाचारी, ज्ञानज्ञ, तपस्वी आदि कहा गया है । २८५ इस तरह विमुक्ति नामक अध्ययन ज्ञान, दर्शन और चारित्र की प्रधानता को दर्शाने वाला है ।
इस तरह आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुत-स्कन्ध में नौ अध्ययन हैं और उनके ५१ उद्देशकों में जहाँ आध्यात्मिक आचार-विचार की समीक्षा की गई है वहाँ उसी प्रथम श्रुत-स्कन्ध में मानव मात्र से लेकर संपूर्ण जगत के प्राणी मात्र के जीवन संरक्षण की जानकारी दी गई है। महाबोधि तत्व एवं परिज्ञा का बोधक प्रथम श्रुत-स्कन्ध निश्चित ही सम्यक् चारित्र की उज्ज्वलता को बनाये रखने वाला महत्त्वपूर्ण अंश कहा जा सकता है । आधुनिक पर्यावरण के संरक्षण के लिये इस श्रुत-स्कन्ध की बोधगम्य सामग्री समग्र संरक्षण में सहायक ही नहीं अपितु कार्यकारी सिद्ध होगी । यह भी कहा जा सकता है कि आचारांग का यह प्रथम श्रुत-स्कन्ध पृथ्वी के पर्यावरण को बचा सकता है जल की उपादेयता को सुरक्षित रख सकता है। अग्नि और अग्नि के तत्वों के संरक्षण में इसकी शिक्षा निश्चित ही उपकारी होगी। वायु को प्रदूषण से बचाया जा सकता है तथा मानव को जीवन दान देने वाले वनस्पति विज्ञान से
आचाराङ्ग- शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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