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________________ की वृत्ति साधक में जितनी अधिक होगी, वह उतना ही परावलम्बी, पराश्रित, परमुखापेक्षी और दीन-हीन बनता जायेगा।२७४ अध्ययन में परस्पर में की जाने वाली क्रियाओं का निषेध किया है। आचार चूला२७५ में निशीथ चूर्णि२७६ एवं उत्तराध्ययन२७७ आदि ग्रन्थों में इन क्रियाओं का विस्तार से विवेचन है। तृतीय चूलिका : प्रथम अध्ययन : भावना भावना नामक इस अध्ययन में महावीर के पञ्च कल्याणक का विवेचन है। गर्भ-अवतरण, देवानन्दा का गर्भ साहरण, महावीर का जन्म, महावीर का नाम, महावीर का यौवन, पाणिग्रहण-संस्कार, महावीर के प्रचलित नाम, महावीर के परिजनों के नाम, माता-पिता की धर्म साधना, महावीर का अभिनिष्क्रमण, साँवत्सरिक, दौत्रकर्म, लौकान्तिक देवों का आगमन, शिविका निर्माण, शिविकारोहण, प्रवज्या, चारित्र ग्रहण, अभि-ग्रहण, उपसर्ग, केवलज्ञान की प्राप्ति, धर्म-देशना, पञ्च महाव्रतों का कथन, षट्काय जीवों की प्ररूपणा आदि से सम्बन्धित यह अध्ययन महावीर के जीवन को उद्घाटित करने वाला है। ____ जैन दर्शन एवं जैन सिद्धान्त में भावना रूप में बारह भावनाएँ प्रसिद्ध हैं। अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव,संवर, निर्जरा, लोक,बोधि-दुर्लभ और धर्म स्वाख्यातत्व-इन बारह भावनाओं का विवेचन वृत्तिकार ने भी किया है। इन्हें विशुद्ध भावना भी कहा है२७८ । पञ्च महाव्रतों सम्बन्धी भावनाएँ भी इस अध्ययन में हैं। ज्ञान-भावना, वैराग्य-भावना, एकाग्र-भावना, तप-भावना आदि पञ्च महाव्रत की प्रतिज्ञा और उसकी पाँच भावनाओं को प्रस्तुत करने के बाद मुख्य तीन बातों का स्पष्टीकरण किया है १. महावीर की प्रतिज्ञा रूप भावना, २. पञ्च महाव्रत की पाँच भावनाएँ, ३. पञ्च महाव्रत के सम्यक् आराधक का उपाय। ___ मनोज्ञ और अमनोज्ञ भावनाओं का विवेचन भी प्रस्तुत अध्ययन में है। अन्य समवायांग सूत्र,७९ आवश्यक चूर्णि,८° तत्त्वार्थ सूत्र,८१ सर्वार्थ-सिद्धि८२ आदि ग्रन्थों में भावना का विवेचन है। २५ भावनाओं का वर्णन भी आगमों में है। वृत्तिकार शीलाङ्काचार्य ने जिन बारह भावनाओं का निर्देश किया है वे आज भी प्रचलित हैं। श्रमण पञ्च महाव्रतों सम्बन्धी उत्कृष्ट भावनाओं का विवेकपूर्वक आचरण करते हैं, क्योंकि सम्यक् आराधिक, सम्यक्-भावनाओं का विवेकपूर्वक आचरण करते हैं, आगमानुसार चलते हैं। आगमानुसार आचार-विचार का पालन करते हैं। मोक्षमार्ग का सम्यक् सिद्धान्त ही उनकी उत्कृष्ट धारणा होती है, इसलिये यह सम्यक्-साधना का प्रतीक भावना नामक अध्ययन श्रमण धर्म पर आधारित है। चतुर्थ चूला : अध्ययन : विमुक्ति१०६ आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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