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________________ सम्बन्धित तृण-वृक्षों आदि को बचाया जा सकता है, जो हमें आज भी जीवनदान दे रहे हैं। प्राणीजगत का समग्र वातावरण मानवीय आकांक्षाओं ने जितना प्रदर्शित किया है उतना किसी ने नहीं, इसलिये आचारांग के मानवीय मूल्यों को निर्धारित करने वाली दृष्टि आज भी उपयोगी है। आचारांग के द्वितीय श्रुत-स्कन्ध की आचार चूला, आचार पद्धति आदि श्रमण चर्या से सम्बन्धित है। साधु एवं साध्वी का जीवन प्रव्रज्या लेने के बाद जिन स्थानों को, जिन-जिन उपकरणों को, जिन-जिन शयनों को, जिन-जिन आसनों को एवं जिन-जिन एषणीय क्रियाओं को करता है वे प्राणी मात्र के प्रति जीवनदान देने के लिये हैं तथा इनसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, संयम आदि की वृद्धि पर भी बल दिया जा सकता है। साधु जीवन की कठिन से कठिन क्रिया सभी तरह से उपयोगी मानी गई है जबकि उसमें यथेष्ट आचार-विचार हो तथा उनका समग्र जीवन, उनका समग्र चिन्तन और उनका समग्र आचरण महाव्रतों की भावनाओं से परिपूर्ण हो 000 १०८ आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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