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________________ साज, सज्जा, विभूषा, श्रृंगार आदि का निषेध पूर्ण रूप से किया गया है। वृत्तिकार ने जिन कल्पित उद्देशकों को ही सर्वोपरि माना है ।२४७ इस तरह से प्रयत्नशील साधक वस्त्रएषणा में विवेक को धारण करता है। षष्ठ अध्ययन : पात्रैषणा ___ पात्रैषणा से सम्बन्धित यह अध्ययन साधक की क्रिया का एक अङ्ग है। पात्र के बिना पिण्ड (आहार) नहीं ग्रहण कर सकता है। इसलिये वस्त्रैषणा की तरह पात्रैषणा का विवेचन आचारांग सूत्र में किया गया है ।२४८ वृत्तिकार ने पात्र के दो भेद किये हैं-१. द्रव्य-पात्र, २. भाव-पात्र । भाव-पात्र साधु है, व्रती, संयमी है। उनकी आत्मरक्षा या उनकी संयम परिपालना के लिये द्रव्य-पात्र का विधान है। द्रव्य-पात्र काष्ठ आदि से निर्मित होते हैं।२४९ इस तरह यह अध्ययन दो उद्देशकों में विभक्त है। प्रथम उद्देशक ___ पात्र के प्रकार मर्यादा का विचार इस उद्देशक में है ।२५० एषणा दोष युक्त पात्र ग्रहण का निषेध, बहुमूल्य पात्र ग्रहण करने का निषेध, अनेषणीय पात्र ग्रहण करने का निषेध, पात्र प्रतिलेखन आदि से सम्बन्धित यह उद्देशक साधु-साध्वी के लिये पात्रैषणा की विविध मर्यादाओं का उल्लेख है; क्योंकि संयमी भूमि प्रमार्जित कर, प्रतिलेखन कर या उसका शोधन करके ही पात्र को उठाता है, पात्र को रखता है और विवेकपूर्वक ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना में प्रत्यनशील होता है। द्वितीय उद्देशक आहार आदि के लिये पात्रों का प्रतिलेखन या प्रमार्जन करके यतनापूर्वक संयमी आहार आदि के लिये निकलता है। पात्रों को कैसे सुखाना चाहिए और उन्हें विहार करते समय किस तरह ले जाना चाहिए। इन सभी का कथन इस उद्देशक में सप्तम अध्ययन : अवग्रह प्रतिमा साधक का साधना क्षेत्र अवग्रह प्रतिमा पर ही आधारित है। अवग्रह का अर्थ ग्रहण करना है। अवग्रह को अवधान, सान, अवलम्बना और मेधावी कहा जाता है ।२५१ अवग्रह ग्रहण करने योग्य वस्तु का आश्रय भी है, आवास, स्वामित्व, स्वाधीनता भी है-अवग्रह के चार भेद हैं-१. द्रव्य-अवग्रह, २. क्षेत्रावग्रह, ३. कालावग्रह, ४. भावाह ।२५२ अवग्रह प्रतिमा में विविध प्रतिज्ञाओं का समावेश है। अवग्रह प्रतिमा अध्ययन के दो उद्देशक हैं जिनमें विविध अवग्रहों का कथन किया गया है आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन १०१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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