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________________ को देखकर मिथ्यावाद से बचने के लिये सदैव ही विवेकपूर्वक भाषा का प्रयोग करता है।४३ संयत भाषा का प्रयोग साधु जीवन की भाषा समिति का अनिवार्य अङ्ग है। द्वितीय उद्देशक व्यक्ति जिस रोग से पीड़ित हो उसे साधक व्यक्ति का वचन व्यवहार करने को काना, लँगड़े को लँगड़ा आदि कहना भी भाषा विवेक के अन्तर्गत नहीं आता है। इसलिये संयमी के लिये सावध भाषा बोलने का निषेध किया गया है।४४ किसी शब्द आदि के विषय में उस रूप का कथन संयमी के लिये उचित नहीं है। स्थानांग-सूत्र के पाँचों इन्द्रियों के २३ विषय और २४० विकार बताये गये हैं। उन विषयों को जैसा है वैसा भावपूर्वक कहना ठीक नहीं है। इस तरह यह उद्देशक भाषा में संयत परिमित शब्दों के बोलने पर अधिक बल देता है; क्योंकि इससे ज्ञानी के ज्ञान का विकास होता है तथा आचार की पवित्रता बढ़ती है। पञ्चम अध्ययन : वस्त्रैषणा वस्त्रैषणा से सम्बन्धित यह अध्ययन ममत्व का निषेध करने वाला है। वृत्तिकार ने वस्त्र के दो भेद किये हैं १. द्रव्य-वस्त्र, २. भाव-वस्त्र । भाव-वस्त्र संयम का रक्षक है और द्रव्य-वस्त्र शीत आदि निवारण करने का कारण है। इसी अध्ययन में वस्त्रों के प्रकार, वस्त्रों का प्रमाण आदि का भी कथन किया गया है। साधु अपनी निर्ग्रन्थता भी उद्देशक की पूर्ति के लिये संयम एवं एषणा समितिपूर्वक वस्त्रैषणा करता है। यह अध्ययन दो उद्देशकों में विभक्त हैप्रथम उद्देशक इस उद्देशक में साधु-साध्वी के द्वारा ग्रहण किये गये वस्त्रों के प्रकार एवं परिमाण का उल्लेख है। श्रमण मूलतः छः प्रकार के वस्त्रों को ग्रहण कर सकता है, जैसे-१. जोंगमिक, २. भांगिक, ३. सानिक, ४. पौत्रक, ५. लोमिक, ६. तूलकृत ।२४५ प्रस्तुत वस्त्रों के प्रकार स्थानांग, बृहद्कल्प आदि सूत्रों में भी हैं। वस्त्रएषणा विवेक ही साधु-साध्वी की आचार संहिता का मूल उद्देश्य है। द्वितीय उद्देशक साधना विधि सम्बन्धित निर्देश२४६ १. सादे एवं साधारण अल्प मूल्य वाले एषणीय वस्त्र की याचना करें, २. जैसे भी सादे एवं साधारण वस्त्र मिलें या ग्रहण करें, वैसे ही उन स्वाभाविक वस्त्रों को सहज भाव से पहने-ओढ़ें, ३. उन्हें रङ्ग-धोकर या उज्ज्वल एवं चमकीले-भड़कीले आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन १०० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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