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एकादश उद्देशक
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इस उद्देशक में मायाचार से रहित आहार ग्रहण करने का निर्देश दिया है। लोलुपता के वशीभूत होकर श्रमण मायाचार दंभ, अहंकार आदि की वृत्ति को धारण कर लेता है। पहले वह मन में कपट करता है तदन्तर आहार को अग्राह्य बतला र स्वयं खा लेता है । २२७ इस उद्देशक में संक्षिप्त रूप में पिण्डैषणा के सात कारण दिये हैं । वृत्तिकार ने पिण्डैषणा पानक एषणा आदि का निषेध करते हुए श्रमण के लिये मूलोत्तर गुणों की ओर अग्रसर होने का निर्देश किया है।
द्वितीय अध्ययनः शय्यैषणा -
काल
" शय्यैषणा नामक द्वितीय अध्ययन श्रमण के शयन आसन, स्थान, स्वाध्याय भूमि आदि का कथन करने वाला है । शय्या का अर्थ आगमिक दृष्टि से चारित्र शुद्धि का उपाय है,२२८ जिसे स्थिति भी कहा जाता है। साधक अपनी साधना के समय जिन स्थानों को, आसनों को, संस्तारक को, या उपकरण आदि को चारित्र की शुद्धि के लिये समावेश करता है, वह शय्या है । वृत्तिकार ने द्रव्य शय्या, क्षेत्र शय्या, शय्या और भाव शय्या – इन चार शय्याओं को संयमी के लिये उपयोगी बतलाया है । २२९ द्रव्य शय्या के अन्तर्गत सचित्त, अचित्त और सचिताचित्त का समावेश किया है । २३० भाव शय्या के अन्तर्गत स्थितिकरण का अन्तर्भाव किया है । इस तरह शैय्या विशुद्धि का कारक है। विवेक और त्याग का परिचायक है । २३१ संयत् के लिये द्रव्य शय्या का अन्वेषण, ग्रहण और परिभोग विवेकपूर्वक करना शय्यैषणा है, जिसमें शय्या विशुद्धि का कथन किया गया है । इस शय्यैषणा नामक अध्ययन में तीन उद्देशक हैं जिनमें संयमी साधु के स्थान आदि का निरूपण किया गया है। प्रथम उद्देशक
सर्वप्रथम साधु उपाश्रय की खोज करता है, जो निर्दोष जीव-जन्तु से रहित, एकान्त होता था । उसमें विवेकपूर्वक साधु या साध्वी निवास करते हैं । उपाश्रय में तीन प्रमुख कार्य साधक के द्वारा किये जाते हैं - १. कायोत्सर्ग, २. शयन आसन और स्वाध्याय । २३२ इन स्थानों में प्रवेश से पूर्व गृहस्थ से उसकी अनुमति प्राप्त करता है फिर उसमें प्रवेश करता है
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उपाश्रय का अर्थ है— आत्मा की समीपता को प्राप्त करना । साधक आत्मशुद्धि के निमित्त जिन स्थानों को ग्रहण करता है वे उसकी शय्या स्थान कहलाने लगते हैं जहाँ अपने करने योग्य कार्यों को विधिपूर्वक साधक करता है ।
इस तरह उपाश्रय की एषणा साधक विधिपूर्वक एवं विवेकपूर्वक करता है । गृहस्थ के स्थानों को नहीं ग्रहण करता है, क्योंकि वे स्थान कभी भी पवित्र नहीं माने जा सकते हैं, उन स्थानों पर साधु के लिये पूर्ण रूप से निवास करने का निषेध किया
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आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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