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________________ परस्पर बाँटने को कहे तो भी ग्रहण न करे। उस समय समभावपूर्वक विचरण करे। आधःकर्म आदि दोषों को टालते हुए आहार याचना करे। इस तरह यह समग्र विवेचन समभावपूर्वक आहार करने की वृत्ति पर प्रकाश डालता है। षष्ठ उद्देशक मार्ग की गवैषणा से सम्बन्धित यह उद्देशक आहार में लगने वाले दोषों का विवेचन करता है। संसृष्ट और असंसृष्ट आहार ग्रहण करने का निषेध करता है ।२१९ _ संसृष्ट और असंसृष्ट वस्तु लेने का विधान निशीथ भाष्य की चूर्णि में किया गया है। वृत्तिकार ने भी अपनी वृत्ति में इसका उल्लेख किया है। मूलतः संसृष्ट के निम्न भेद बतलाये गये हैं२० १. पूर्व कर्म, २. पश्चात् कर्म, ३. उदकाई, ४. सस्निग्ध, ५. सचित्त मिट्टी, ६.सचित्त क्षार, ७. हड़ताल, ८. हींगलू, ९. मेनसिल, १०. अंजन, ११. नमक, १२. गेरू, १३. पीली मिट्टी, १४. खड़िया मिट्टी, १५. सौराष्ट्रिका, १६. तत्काल पीसा हुआ बिना छना आटा, १७. चावलों के छिलके, १८. गीली वनस्पति का चूर्ण या फलों के बारीक टुकड़े। सचित्त मिश्रण आहार सर्वथा वर्जित है। इसलिये आहार के लिये प्रविष्ट साधु या साध्वी उक्त कारणों का भी निषेध करते हुए ज्ञान, दर्शन, चारित्र की शुद्धि एवं विवेकपूर्वक आहार ग्रहण करे। सप्तम उद्देशक यह उद्देशक भी पिण्डैषणा से सम्बन्धित है। इसमें मालाहत२१ दोष से युक्त आहार ग्रहण करने का निषेध किया गया है। इसमें उद्गम के १३ दोष बतलाये गये हैं। १. ऊर्ध्व, २. अधो और ३. तिर्यक । मालाहत आहार तथा उद्भिन्न दोष युक्त आहार श्रमण के लिये ग्राह्य नहीं है । षट्काय इसमें ग्राह्य और अग्राह्य जल, पानक-जल, आदि के ग्रहण करने में जो दोष लगता है उसका भी निषेध किया गया है। वृत्तिकार ने निक्षिप्त दोष के दस भेद गिनाये हैं,२२ जैसे १. शंकित, २. प्रक्षित, ३. निक्षिप्त, ४. पिहित, ५. संहत, ६. दायक, ७. उन्मिश्र, ८. अपरिणत, ९. लिप्त और १०. छर्दित । ___ इन दस एषणा दोषों से रहित श्रमण ज्ञान-दर्शन और चारित्र की वृद्धि के लिये आहार को ग्रहण करता है। अष्टम उद्देशक अग्राह्यपानक का निषेध करने वाला यह उद्देशक आहार भी आसक्ति से श्रमण को रोकता है। वृत्तिकार ने कहा है कि पानक उद्गम दोषों से दूषित होने के कारण ग्रहण करने योग्य नहीं है। साधक को चाहिए कि वह द्राक्षा, आँवला, इमली ९४ आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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