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________________ १२ अढ़ाई मासिक ६. द्विमासिक मासखमण ८. अर्ध मासिक ९. अष्टम भक्त १०. षष्ठ भक्त भद्रतप १२. महाभद्रतप १३. सर्वतोभद्र तप १५० ३६० ३६० १०८० ३६ . ४५८ १२ २२९ ११. १ १० .. १ कुल योग ३५१ ४१६५ . .. ३४९ इस तरह इन चार उद्देशकों में तपश्चर्या की उत्कृष्ट भूमिका प्रस्तुत की गई है। प्रथम श्रुतस्कन्ध की आचार-विचार एवं साधना दृष्टि का समग्र प्रस्तुतीकरण अनासक भाव का सांगोपांग विवेचन करता है। भाषा, भाव एवं सूत्रात्मक संरचना . इस प्रथम अङ्गग्रन्थ की प्रथम एवं प्राचीनतम प्रस्तुति है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध द्वितीय श्रुतस्कन्ध में विविध चूलिकाओं के माध्यम से श्रमण चर्या का प्रमुख केन्द्रबिन्दु समभाव है, जिसमें समितियों को आधार बनाया गया है। प्रत्येक चूलिका साधु की समभाव दृष्टि को प्रकट करने वाली तथा अलग-अलग मार्ग का निर्देश करने वाली है। वृत्तिकार ने वृत्ति के आरम्भ में नव ब्रह्मचर्य को प्रस्तुत किया है। उन्होंने द्रव्य और भाव की दृष्टि से अलग-अलग रूपों में विवेचन करते हुए यह भी कथन किया है कि जीव, पुद्गल, समय, द्रव्य, पर्याय आदि की दृष्टि से आचार सम्बन्धी विवेचन आवश्यक है क्योंकि आचार उपकार करने वाला है, शिष्य को नया पथ दिखलाने वाला है। आचारांग सूत्र का द्वितीय श्रुतस्कन्ध पाँच चूलिकाओं से युक्त है, इसकी चार चूलिकाएँ आचारांग में हैं और पाँचवीं चूलिका निशीथ सूत्र एवं नंदी सूत्र में मिलती है। आचार कल्प, आचार प्रकल्प, स्थानांग, समवायांग आदि की नियुक्ति में भी इस चूलिका के कुछ अंश हैं।२०१ यह श्रुतस्कन्ध उपक्रम के रूप में भी प्रसिद्ध है। वृत्तिकार ने उपक्रम में द्रव्य और भाव की दृष्टि से सचित्त-अचित्त और सचिताचित्त इन त्रिविध कारणों को प्रस्तुत करने के उपरान्त संख्या, धर्म, गुण आदि का भी विवेचन किया है। इसी के अन्तर्गत अग्र शब्द का निरूपण भी किया है। आगमों में अग्र को मुख कहा गया है अर्थात् ९० आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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