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में प्रवृत्त होते हैं ।१६४ इस प्रकार षष्ठ अध्ययन के पञ्चम उद्देशक में साधक की आत्मिक वीरता का परिचय दिया गया है। सप्तम अध्ययन : महापरिज्ञा
महापरिज्ञा नामक अध्ययन उपलब्ध नहीं है। इसके विषय में यह कहा जाता है कि यह महापरिज्ञा का बोधक था। इसमें अनेक चमत्कारी विद्याओं का उल्लेख था।१६५ इसलिए इस अध्ययन से संबंधित विषय-वस्तु नहीं दी जा रही है।
महापरिज्ञा का अर्थ है-विशिष्ट ज्ञान ।६६ सम्यक् ज्ञान एवं महाप्रज्ञों का अनुपम सार निश्चत रूप में प्रशंसनीय रहा होगा। हमारा यह दुर्भाग्य है कि ऐसा अमूल्य अध्ययन काल के कराल गाल में चला गया है। अष्टम अध्ययन : विमोक्ष
.. विमोक्ष का अर्थ परित्याग है। नियुक्तिकार ने विमोक्ष का प्रतिपादन करते हुए कथन किया है कि “जीव का कर्म द्रव्यों के साथ जो सहयोग होता है वह बन्ध है, इस बन्ध से छूट जाना मोक्ष है। अर्थात् बन्धन से छूटने का नाम मोक्ष है। इसलिए कहा गया है कि मोक्ष बन्धपूर्वक होता है। जिसका बन्धन नहीं होता है उसको मोक्ष कैसे हो सकता है? जो बन्धता है वही छूटता है। अतएव मोक्ष का स्वरूप बतलाने से पहले बन्ध का कथन किया है। बन्ध के क्षय को विमोक्ष कहते हैं।१६७ विमोक्ष मृत्यु नहीं, मृत्यु विजय का महोत्सव है परन्तु कर्म-विमुक्ता का नाम विमोक्ष है। जो अन्तरात्मा की विशुद्धता का परिचायक है।६८ ।
__ वृत्तिकार ने पृथक्-पृथक् उद्देशकों की अपेक्षा से विमोक्ष को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया है। इसके प्रथम उद्देशक में परित्याग का विवेचन है। द्वितीय उद्देशक में कर्म नियन्त्रण, विधि और निषेध है। तृतीय उद्देशक में उपकरण एवं शरीर आदि का परित्याग, चतुर्थ में आत्मशक्ति, पञ्चम उद्देशक में भक्त परिज्ञा, षष्ठ उद्देशक में एकत्व भावना तथा इंगित मरण का बोध कराया गया है। सप्तक उद्देशक में भिक्षु प्रतिमा एवं अष्टम उद्देशक में संल्लेखना समाधि मरण आदि का विधान है।६९
वृत्तिकार ने नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इन छ: निक्षेपों के आधार पर विमोक्ष का प्रतिपादन किया है। इसी के अंतर्गत द्रव्य-विमोक्ष और भावविमोक्ष, इन दो विमोक्षं के भेदों के साथ अन्य भेद भी दिये गये हैं।७० प्रथम उद्देशक
समनोज्ञ और अमनोज्ञ अर्थात् सदाचारी एवं शिथिलाचारी दो प्रकार के साधु होते हैं। श्रमण धर्म की विचारधारा में सदाचारी-अणगार साधक पूर्ण त्यागी कहा जाता है। उसकी सभी प्रकार की वृत्तियाँ श्रमणाचार पर आधारित होती हैं, परन्तु यदि किसी तरह से साधक की साधना में शिथिलता आ जाती है या किसी तरह का दोष आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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