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________________ चतुर्थ अध्ययन : सम्यक्त्व ___ सम्यक्त्व का अर्थ है-सच्चा ज्ञान, सच्ची श्रद्धा और सच्चा आचरण । सम्यक्त्व ज्ञान, दर्शन और चरित्र-इन तीन रत्न स्वरूप है। सम्यक्त्व आत्मा का स्वाभाविक धर्म है। यह आत्मा में विशेष शुद्धि के कारण प्राप्त होता है। इसके तीन भेद कहे गये हैं-१. औपशमिक सम्यक्त्व, २. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व और ३. क्षायिक सम्यक्त्व। वृत्तिकार ने नय विवक्षा एवं निक्षेप विवक्षा के आधार पर सम्यक्त्व के निम्न भेद किये हैं १. नाम सम्यक्त्व, २. स्थापना सम्यक्त्व, ३. द्रव्य सम्यक्त्व और •४. भाव सम्यक्त्व। उक्त भेदों के भी भेद-प्रभेद गिनाये हैं। . वृत्तिकार ने सम्यक्त्व निरूपण में सम्यग्दर्शन को मूल आधार बनाया है। इसे मुक्तिपथ का प्रथम सोपान कहा है। जब तक सम्यक्त्व नहीं होता है तब तक समस्त ज्ञान एवं समस्त चारित्र मिथ्या अर्थात् निरर्थक होता है। तत्वार्थ श्रद्धान सम्यग्दर्शन है, तत्व सर्वज्ञ प्रणीत है। अहिंसा की मूल प्रवृत्ति सम्यक्त्व की नींव पर आधारित है, इसी दृष्टि को प्रतिपादित करने वाला सम्यक्त्व अध्ययन अहिंसा की सूक्ष्मता पर प्रकाश डालता है। सम्यग्दर्शन की उत्कृष्टता का बोध कराता है। ज्ञान की अनुपम निधि का आस्वाद कराता है तथा आत्मशुद्धि का प्रबल पथ चारित्र का दिग्दर्शन कराता है। यह चार उद्देशकों में विभाजित हैं। प्रथम उद्देशक इस उद्देशक में प्राणीमात्र के प्रति समभाव रखने का उपदेश दिया गया है। सूत्रकार ने सभी प्राणों, सभी भूतों,सभी जीवों एवं सभी तत्वों को शारीरिक एवं मानसिक कष्ट उचित नहीं है ।९३- यह उपदेश जनसमूह, अनुपस्थित जनसमूह, मुनिसंघ, गृहस्थ, रागी त्यागी, भोगी, योगी आदि के लिये समान रूप से दिया गया है । वे धर्म को समझें। सम्यक्त्व को ग्रहण करें। प्रमादी न बनें । एक दूसरे की देखा-सीखी न करें। अंधानुकरण४ की प्रवृत्ति लोगों में अहितकारी है। वृत्तिकार ने भीमसेन, भीम, सत्यभामा और भामा जैसे पुरुषों का उल्लेख भी किया है। लोकैषणा बुद्धि मुमुक्षु में नहीं होती है। उनमें सावध आरम्भ की प्रवृत्ति निवास नहीं कर सकती क्योंकि वे सम्यक्त्व के मार्ग पर अग्रसर परीषहों और उपसर्गों को भी धैर्यपूर्वक सहन करते हैं तथा विवेक दृष्टि से साधना मार्ग में उद्यमशील बने रहते हैं। ७२ आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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