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आवश्यकनियुक्तिः
प्रतिक्रमणं व्यतिक्रान्तदोषनिर्हरणं व्रतायुच्चारणं च । प्रत्याख्यानं भविष्यत्कालविषयवस्तुपरित्यागश्च । तथा कायोत्सगों भवति षष्ठः । सामायिकावश्यकनियुक्तिः चतुर्विंशतिस्तवाश्यकनियुक्तिः, वन्दनावश्यकनियुक्तिः, प्रतिक्रमणावश्यकनियुक्तिः, प्रत्याख्यानावश्यकनियुक्तिः, कायोत्सर्गावश्यकनियुक्तिरिति ॥१५॥
तत्र सामायिकनामावश्यकनियुक्तिं वक्तुकाम: प्राहसामाइयणिज्जुत्ती वोच्छामि जहाकमं समासेण । आयरियपरंपराए जहागदं आणुपुव्वीए' ।।१६।।
सामायिकनियुक्तिं वक्ष्ये यथाक्रमं समासेन ।
आचार्यपरंपरया यथागतं आनुपूर्व्या ।।१६।। सामायिकनियुक्तिं सामायिकनिरवयवोपायं वक्ष्ये यथाक्रमं समासेनाचार्यपरंपरया यथागतमानुपूर्व्या । अधिकारक्रमेण पूर्वं यथानुक्रमं सामायिककथनविशेषणं पाश्चात्यानुपूर्वीग्रहणं, यथागतविशेषणमिति कृत्वा न पुनरुक्तदोषः ॥१६॥
क्रमण है । (५) भविष्यकाल के लिए वस्तु का त्याग करना प्रत्याख्यान है । तथा (६) काय से ममत्व का त्याग करना कायोत्सर्ग आवश्यक है ।
इस प्रकार १-सामायिक आवश्यक नियुक्ति, २-चतुर्विंशति आवश्यक नियुक्ति, ३-वन्दना आवश्यक नियुक्ति, ४-प्रतिक्रमण आवश्यक नियुक्ति, ५-प्रत्याख्यान आवश्यक नियुक्ति और ६-कायोत्सर्ग आवश्यक नियुक्ति-ये आवश्यक नियुक्ति के छह भेद हैं ॥१५॥
अब पूर्वोक्त छह आवश्यकों में से प्रथम सामायिक नामक आवश्यकनियुक्ति को कह रहा हूँ
गाथार्थ-आचार्य परम्परानुसार आगत यथाक्रम से संक्षेप में मैं आनुपूर्वी क्रम से सामायिक नियुक्ति को कहूँगा ॥१६॥
आचारवृत्ति-अधिकार के क्रम से संक्षेप में मैं आचार्य परम्परा के अनुरूप अविच्छिन्न प्रवाह से समागत सामायिक के सम्पूर्ण उपाय रूप इस प्रथम सामायिक आवश्यक को कहूँगा ॥१६॥
*ग्रन्थारम्भ से यहाँ तक की कुल १६ गाथाओं (एवं सम्पूर्ण मूलाचार में आरम्भ से यहाँ) तक की 'संस्कृत टीका के आधार पर पुरानी हिन्दी (ढूंढारी भाषा) में भाषावनिका के लेखक पं० नन्दलाल जी समय हैं । इनके अचानक स्वर्गवास के बाद शेष भाग की भाषा वचनिका के कर्ता जयपुर के ही निवासी पं० ऋषभदास निगोत्या हैं । हिन्दी अनुवाद करने में इस भाषा वचनिका का काफी साहाय्य प्राप्त हुआ ।
१.
अ, ब-पुव्वीय ।
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