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________________ आवश्यकनियुक्तिः भावमंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं भवति मंगलं यस्मात्तस्मात् सर्वशास्त्रादौ मंगलं क्रियत इति ॥१३॥ पंचनमस्कारनिरुक्तिमाख्यायावश्यकनिर्युक्तेर्निरुक्तिमाहण वसो अवसो अवसस्सकम्ममावस्सयंति बोधव्वा' । जुत्तित्ति उवायत्ति य णिरवयवा होदि णिज्जुत्ती ।।१४।। न वश: अवश: अवशस्य कर्म आवश्यकमिति बोद्धव्यं । युक्तिरिति उपाय इति च निरवयवा भवति नियुक्तिः ॥१४॥ न वश्य: पापादेरवश्यो यदेन्द्रियकषायेषत्कषायरागद्वेषादिभिरनात्मीयकृतस्तस्यावश्यकस्य यत्कर्मानुष्ठानं तदावश्यकमिति बोद्धव्यं ज्ञातव्यं । युक्तिरिति उपाय इति चैकार्थः । निरवयवा सम्पूर्णाऽखण्डिता भवति नियुक्ति: । आवश्यकानां नियुक्तिरावश्यकनियुक्तिरावश्यकसम्पूर्णोपाय: अहोरात्रमध्ये सांधूनां यदाचरणं तस्याववोधकं पृथक्पृथक् स्तुति' स्वरूपेण “जयति भगवानित्यादि" प्रतिपादकं ___ मंगल के दो भेद होते हैं-द्रव्यमंगल और भावमंगल । जिस हेतु से इन सभी मंगलों में यह पंचनमस्कार प्रथम मंगल है । इसीलिए सम्पूर्ण शास्त्रों के प्रारम्भ में मंगल किया जाता है ॥१३॥ पंचनमस्कार की निरुक्ति कहकर अब आवश्यकनियुक्ति की निरुक्ति कहते हैं गाथार्थ-जो वश में नहीं है वह अवश है । उस अवश की (मुनि की) क्रिया को आवश्यक जानना चाहिए । युक्ति और उपाय एक हैं । इस प्रकार सम्पूर्ण उपाय को नियुक्ति कहते हैं ॥१४॥ . आचारवृत्ति-जो पाप आदि के वश्य नहीं है वे अवश्य है । जो इन्द्रिय, कषाय, नोकषाय और राग-द्वेष आदि के द्वारा आत्मीय (वशीभूत) नहीं किये गये हैं अर्थात् जिस समय इन इन्द्रिय कषाय आदिकों ने जिन्हें अपने वश में नहीं किया है उस समय वे (मुनि) अवश्य होने से आवश्यक कहलाते हैं और उनका जो कर्म अर्थात् आचरण है वह आवश्यक कहा गया है-ऐसा जानना चाहिए । युक्ति और उपाय-ये एकार्थवाची हैं । उस निरवयव अर्थात् सम्पूर्णअखण्डित उपाय को नियुक्ति कहते हैं । आवश्यकों की जो नियुक्ति है उसे आवश्यक नियुक्ति कहते हैं अर्थात् आवश्यक का सम्पूर्णतया उपाय आवश्यक नियुक्ति है । १. ग बोधव्वं । २. क स्वरूपेण स्तुति ज० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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