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________________ आवश्यकनियुक्तिः एवं गुणयुक्तानां पंचगुरूणां विशुद्धकरणैः । यः करोति नमस्कारं स प्राप्नोति निर्वृतिं शीघ्रं ॥१२॥ एवं गुणयुक्तानां पंचगुरूणां पंचपरमेष्ठिनां सुनिर्मलमनोवाक्कायैर्यः करोति नमस्कारं स प्राप्नोति निर्वृतिं सिद्धिसुखं शीघ्रं । न पौनरुक्त्यं, द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकयोरुभयोरपि संग्रहार्थत्वादिति ॥१२॥ किमर्थं पंचनमस्कारः क्रियत इति चेदित्याहएसो पंच णमोयारो' सव्वपावपणासणो । मंगलेसु य सव्वेसु पढमं हवदि' मंगलं ।।१३।। - एषः पंचनमस्कारः सर्वपापप्रणाशकः । मंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं भवति मंगलं ॥१३॥ ___ एष पंचनमस्कार: सर्वपापप्रणाशकः सर्वविघ्नविनाशक: मलं पापं गालयतीति विनाशयति, मंगं सुखं लान्त्याददतीति वा मंगलानीति तेषु मंगलेषु गाथार्थ-इन गुणों से युक्त पाँचों परम गुरुओं को जो विशुद्ध मन-वचनकाय से नमस्कार करता है वह शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त कर लेता है ॥१२॥ . आचारवृत्ति—यहाँ प्रश्न यह होता है कि आपने पहले पृथक्-पृथक् पाँचों परमेष्ठियों के नमस्कार का फल निर्वाण बताया है पुन: यहाँ पाँचों के नमस्कार का फल एक साथ फिर क्यों कहा ? यह तो पुनरुक्ति दोष हो गया । इस पर आचार्य समाधान करते हैं कि यह पुनरुक्ति दोष नहीं है क्योंकि द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दोनों नयों का यहाँ पर संग्रह किया गया है । अर्थात् द्रव्यार्थिक नथ की अपेक्षा से अर्थ को समझने वाले संक्षेप रुचि वालों के लिए यह समष्टिरूप कथन है और पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से विस्तार में रुचि रखने वाले शिष्यों के लिए पहले विस्तार से कहा जा चुका है ॥१२॥ किसलिए पंचनमस्कार किया जाता है ? इसे बतलाते हैं गाथार्थ-यह पंच नमस्कार मन्त्र सर्वपापों का नाश करने वाला है और सर्वमंगलों में यह प्रथम मंगल है ॥१३॥ आचारवृत्ति—यह पंच नमस्कार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला, सम्पूर्ण विघ्नों का विनाश करने वाला है इसलिए मंगल स्वरूप है । मंगल शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ करते हैं जो मल-पाप का गालन करते हैं-विनाश करते हैं, अथवा जो मंगं अर्थात् सुख को लाते हैं-देते हैं वे मंगल हैं । १. अ,ब,ग णमोकारो। २. ग भवदि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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