________________
( २९)
योगदान किया है, जिसके कारण हमारा यह भारत देश सदा से ही गौरवान्वित रहा है। मूलाचार पर उपलब्ध-अनुपलब्ध व्याख्या-साहित्य
शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध मूलाचार श्रमणाचार विषयक एक ऐसा प्राचीन एवं प्रामाणिक श्रेष्ठ मूल ग्रन्थ है, जिससे दिगम्बर परम्परा के तद्विषयक प्रायः सभी परवर्ती ग्रन्थ इससे प्रभावित अथवा इसके आधार पर लिखे गये दृष्टिगोचर होते हैं । मूलाचार पर कुछ व्याख्याग्रन्थ (टीकाएँ) तो लिखी ही गयीं, साथ ही इसको मूल आधार बनाकर जिन ग्रन्थों की स्वतन्त्र रचना हुई, उनमें अनगार-धर्मामृत (पं. आशाधर प्रणीत), आचारसार (आ० वीरनन्दि प्रणीत), चारित्रसार (चामुण्डरायकृत), मूलाचार-प्रदीप (भट्टारक सकलकीर्ति प्रणीत) आदि प्रमुख ग्रन्थ हैं, जिन पर मूलाचार का पदे-पदे स्पष्ट प्रभाव है ।
यहाँ मूलाचार पर उपलब्ध-अनुपलब्ध टीका (व्याख्या) ग्रन्थों का परिचय प्रस्तुत है१. आचार्य वसुनन्दि एवं उनकी आचारवृत्ति
आचार्य वसुनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती की मूलाचार पर 'आचारवृत्ति' नामक सर्वार्थसिद्धि टीका संस्कृत भाषा में लिखी गयी उपलब्ध है। यह एक श्रेष्ठ और प्रामाणिक वृत्ति है । जिसमें प्रत्येक गाथा के गहन विषयों का बहुत ही सरलसहज ढंग से स्पष्टीकरण किया गया है । वस्तुत: मूलाचार जैसे मूलग्रन्थ के विषयों को हृदयंगम करने वालों में इनका अग्रणी स्थान है । इनकी यह आंचारवृत्ति इतनी प्रसिद्ध और सरल है कि सामान्य जन भी इसका सुगमता से अध्ययन कर लेते हैं । गूढ विषय को स्पष्ट करते हुए चलना और अपनी सहज एवं सरल भाषा में ग्रन्थकार के भावों को प्रकट कर देना, यह वसुनन्दि की मुख्य विशेषता है ।
- वसुनन्दि श्रावकाचार ग्रन्थ के अन्त में (गाथा सं. ५४०-५४४) दी गयी प्रशस्ति के आधार पर ही आचार्य वसुनन्दि के विषय में मुख्यत: जानकारी मिलती है । आचार्य कुन्दकुन्द की परम्परा में श्रीनन्दि नामक आचार्य हुए हैं । उनके शिष्य नयनन्दि और उनके शिष्य नेमिचन्द्र के प्रसाद से वसुनन्दि ने इस ग्रन्थ की रचना की।
प्रशस्ति में ग्रन्थ-रचना का समय नहीं दिया । किन्तु वसुनन्दि के दादा गुरु (नयनन्दि) ने वि.सं. ११०० में 'सुदंसण चरिउ' (सुदर्शन चरित्र) नामक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org