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मूलाचार के षडावश्यकाधिकार गत आवश्यकनियुक्ति और आ० भद्रबाहु कृत आवश्यक नियुक्ति की अनेक गाथायें समान मिलती है । मूलाचारकार आचार्य वट्टकेर ने भी इस अधिकार को आवश्यक नियुक्ति कहकर इसे भी आचार्य परम्परा और आनुपूर्वी से कथित एवं प्राप्त मानते हुए कहा है
आवासयणिज्जुत्ती वोच्छामि जहाकयं समासेण ।
आयरिय परंपराए जहा गदा आणुपुव्वीए ।। मूलाचार ७/२ इस दृष्टि से कुछ विद्वानों का यह कथन नितान्त भ्रामक है कि नियुक्ति साहित्य की विशाल श्रुतराशि केवल श्वेताम्बर परम्परा में ही उपलब्ध है; क्योंकि प्रस्तुत ग्रन्थ के आधार पर हम अब यह साधिकार सप्रमाण कह सकते हैं कि दिगम्बर परम्परा में भी शौरसेनी प्राकृत भाषा में रचित मूलाचार ग्रन्थ के अन्तर्गत सप्तम षडावश्यक अधिकार के रूप में प्रस्तुत आवश्यक नियुक्ति भी विद्यमान है। मूलाचार, इसकी आवश्यकनियुक्ति और कर्ता वट्टकेर
श्रमणाचार. विषयक शौरसेनी प्राकृत भाषा के एक प्राचीन बहूमूल्य ग्रन्थ 'मूलाचार' और इसके अन्तर्गत आवश्यकनियुक्ति के यशस्वीकर्ता आचार्य वट्टकेर का इस क्षेत्र में अनुपम योगदान है । मूलाचार उनकी एक मात्र उपलब्ध कृति है । दिगम्बर जैन परम्परा में आचारांग के रूप में प्रसिद्ध श्रमणाचार विषयक मौलिक, स्वतन्त्र, प्रामाणिक एवं प्राचीन मूलाचार नामक यह ग्रन्थ दूसरी शती के आसपास की रचना है । यद्यपि अन्य कुछ प्रमुख आचार्यों की तरह आ० वट्टकेर के विषय में भी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु उनकी अनमोल इस कृति के अध्ययन से ही आचार्य वट्टकेर का बहुश्रुत सम्पन्न व्यक्तित्व एक उत्कृष्ट चारित्रधारी आचार्यवर्य के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होता है ।
दक्षिण भारत में वेट्टकेरी स्थान के निवासी आचार्य वट्टकेर दिगम्बर परम्परा में मूलसंघ के प्रमुख आचार्य थे । उन्होंने मुनिधर्म की प्रतिष्ठित परम्परा को दीर्घकाल तक यशस्वी और उत्कृष्ट रूप में चलते रहने और दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण करने वाले दीक्षार्थियों एवं मुनियों को अपनी आचार पद्धति एवं नियम-उपनियमों की विस्तृत जानकारी प्राप्ति हेतु, ताकि मुनिधर्म ग्रहण का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त हो, इसी मूल उद्देश्य की प्राप्ति हेतु 'मूलाचार' नामक ग्रन्थ की स्वतन्त्र रचना की, जिसमें श्रमण-निर्ग्रन्थों की आचार-संहिता का सुव्यवस्थित, विस्तृत एवं सांगोपांग विवेचन किया गया है ।
१.
मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन : प्रास्ताविक (लेखक-डॉ. फूलचन्द प्रेमी)।
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