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आचार्य भद्रबाहु द्वितीय एकमात्र प्रमुख नियुक्तिकार हैं, जिन्होंने आवश्यकनियुक्ति गाथा (८८) में नियुक्ति' शब्द का अर्थ इस प्रकार लिखा है-'निज्जुत्ता ते अत्था जं बद्धा तेण होइ निज्जुत्ती' अर्थात् जिसके द्वारा सूत्र के साथ अर्थ का निर्णय होता है, वह नियुक्ति है । . नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु द्वितीय (वि.सं. ५-६ शती) एक बहुत ही समर्थ आचार्य थे । इन्होंने अर्धमागधी के आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार, सूर्यप्रज्ञप्ति
और ऋषिभाषित-इन दस आगम ग्रन्थों पर नियुक्तियाँ लिखी हैं । किन्तु इनमें से सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित ये दो नियुक्तियाँ अनुपलब्ध है । यहाँ यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि उपलब्ध ओघनियुक्ति आवश्यक नियुक्ति की, पिंडनियुक्ति, दशवैकालिक नियुक्ति की, पंचकल्पनियुक्ति बृहत्कल्पनियुक्ति की तथा निशीथनियुक्ति आचारांगनियुक्ति की पूरक है । आ० भद्रबाहु प्रणीत आवश्यक नियुक्ति . आवश्यक नियुक्ति आ० भद्रबाहु (द्वितीय) की सर्वप्रथम कृति है । महाराष्ट्री मिश्रित अर्धमागधी प्राकृत भाषा में निबद्ध यह नियुक्ति विषय वैविध्य की दृष्टि से अन्य नियुक्तियों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है । इसके आधार पर भी परवर्ती अनेक आचार्यों ने भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, विवरण, दीपिका, प्रभृति अनेक व्याख्यायें लिखकर अपनी लेखनी को सार्थक किया । . . . आवश्यक नियुक्ति में सामायिक, वंदना, चतुर्विंशति स्तव, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान-इन जैन आचारशास्त्र के प्रमुख प्रतिपाद्य विषय आवश्यकों का विस्तृत एवं सांगोपांग विवेचन है । इसकी आरम्भिक भूमिका रूप ८८० गाथाओं में मात्र उपोद्घात है, जो इस ग्रन्थ का काफी महत्त्वपूर्ण भाग है । इसमें ज्ञान-पंचक, सामायिक, ऋषभदेव-चरित, महावीर-चरित, गणधरवाद, आर्यरक्षित-चरित, निन्हव्वाद आदि का विवेचन किया गया है । ___ आचार्य भद्रबाहु ने यह नियुक्ति अपने गुरु-उपदेश और आचार्य परम्परा से प्राप्त मानते हुए लिखा है
सामाइयनिज्जुत्तिं वोच्छं उवदेसितं गुरूजणेणं । आयरिय परंपरएण आगतं आणुपुव्वीए ।।
(आव.नि. गाथा ८१/२ खण्ड १, पृ. ३३)
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