SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८) इसी प्रकार आ० यतिवृषभ रचित तिलोय-पण्णत्ति में स्वयं ने अपनी इस कृति चूर्णि संज्ञा प्रदान की है। इस सबसे स्पष्ट है कि चूर्णि साहित्य की यह विधा वृत्त्यात्मक एक ऐसी मौलिक विधा है, जिसमें बीज पदों की वृत्ति के साथ विषय सम्बन्धी नये तथ्य भी संकेतित हैं । इस तरह यह प्रमोद का प्रसंग है कि दिगम्बर एवं श्वेताम्बरइन दोनों ही परम्पराओं में चूर्णि की इस अति प्राचीन और अति महत्त्वपूर्ण व्याख्या पद्धति युक्त आगम ग्रन्थ उपलब्ध हैं । आचार्य शिवशर्म (पाँचवीं सदी) कृत कर्म सिद्धान्त विषयक "शतक चूर्णि" नामक ग्रन्थ अभी मात्र ५५ गाथाप्रमाण प्रकाशित हुआ है। इनका दूसरा ग्रन्थ कम्मपयडि (कर्म-प्रकृति) भी उपलब्ध है, जिसकी ४१५ गाथाओं में बन्धन, संक्रमण, उदय, उदीरण, उपशमन, सत्ता आदि रूप में कर्मसिद्धान्त का बहुत ही उत्तम रीति से विवेचन किया गया है । शतक चूर्णि ग्रन्थ के सम्पादक दिगम्बर परम्परा के क्षुल्लक क्षीरसागरजी ने शिवशर्म का समय ११वीं सदी के पूर्व का माना है । ___ अर्धमागधी चूर्णि साहित्य काफी समृद्ध है । अनेक आगमों पर चूर्णियाँ उपलब्ध हैं । अर्धमागधी प्राकृत आगम पर श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य जिनदासगणि महत्तर चूर्णियों के रचयिता माने जाते हैं । इन्होंने निशीथ विशेष चूर्णि, नन्दी, अनुयोगद्वार, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग-इन आगमों पर चूर्णियों की रचना की है । इनके अतिरिक्त कुछ और भी आगमों पर चूर्णियाँ उपलब्ध होती है । इस विशाल चूर्णि साहित्य में भी भारतीय संस्कृति, कला, इतिहास विषयक तत्त्वों की विपुल सामग्री विद्यमान ४. संस्कृत टीका साहित्य-वस्तुत: जैनाचार्यों की यह विशेषता आरम्भ से ही रही है कि वे किसी भाषा-विशेष से बंधे नहीं रहे । जिस समय समाज में जिस भाषा का प्राबल्य रहा, और भाषा साहित्य की जैसी माँग रही तदनुसार उन्होंने उसी भाषा में विपुल साहित्य का सृजन किया, ताकि वह साहित्य समय की कसौटी पर सदा खरा उतरे । अत: पूर्वोक्त नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि-साहित्य के बाद जब संस्कृत भाषा का प्रभाव बढ़ा, तब संस्कृत टीकाओं के विपुल साहित्य का प्रणयन जैनाचार्यों ने किया । १. जैन साहित्य का इतिहास : भाग १, पृष्ठ १७२ (पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy