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कार्य करते हैं । यही कारण है कि आचार्य गुणधर प्रणीत “कसायपाहुड' आगम के जयधवला नामक टीका के लेखक आ० वीरसेन स्वामी ने इसके चूर्णिसूत्रों के भी व्याख्यान लिखे हैं ।
वस्तुत: कसायपाहुड की गाथाओं का सम्यक अर्थ अवधारण कर आ० यतिवृषभ ने उन पर वृत्तिसूत्र लिखे गये हैं । ये वृत्तिसूत्र ही “चूर्णिसूत्र" के रूप में प्रसिद्ध हैं । इनके अध्ययन से स्पष्ट है कि ये वृत्तिरूप में संक्षिप्त सूत्र लिखे जाने पर भी अर्थ बहुल पदों का समावेश किया गया है, जिससे चूर्णि सूत्रों में पर्याप्त प्रमेय का समावेश हुआ है । जयधवला (अ०प० ५२) में वृत्तिसूत्र की परिभाषा इस प्रकार बतलाई है- "सुत्तस्सेव विवरणाए संखित्तसहरयणाए संगहियसुत्तासेसत्थाए वित्तिसुत्तववएसादों" अर्थात् जिसकी शब्द रचना संक्षिप्त से और जिसमें सूत्रगत विशेष अर्थों का संग्रह किया गया हो, ऐसे सूत्रों के विवरण को वृत्तिसूत्र कहते हैं । . आचार्य यतिवृषभ ने कसायपाहुड के गाथा सूत्रों पर वृत्यात्मक ऐसे सूत्र लिखे, जो बीजपदों के विश्लेषण के साथ प्रसंगगत नये तथ्यों के भी सूचक हैं । चूर्णिसूत्रकार गाथा सूत्रों के बीजपदों का विश्लेषण कई सूत्रों में भी करते हैं। बीजपदों में अन्तर्निहित अर्थ का विश्लेषण जब तक प्रकट नहीं हो जाता, तब तक वे संक्षिप्त रूप में सूत्रों का प्रणयन करते हैं । चूर्णिसूत्र-साहित्य बीजपदों का व्याख्यात्मक तो है ही, साथ ही उसमें ऐसे भी अनेक पद प्रयुक्त हैं, जिनकी व्याख्या या वर्णन जानने के लिए सूचनायें (संकेत) भी जगह-जगह दी हैं । वस्तुत: चूर्णिसूत्रों में प्रस्तुत की गई वृत्तियाँ सूत्रात्मक हैं, भाष्यात्मक नहीं । .. . _जयधवला की मंगल-गाथाओं में आ० यतिवृषभ को “वित्तिसुत्तकत्ता" अर्थात् वृत्तिसूत्रकर्ता कहा गया है । यथा “सो वित्ति सुत्तकत्ता जइवसहो मे वरं देऊ ।" (क.पा. भाग १, पृष्ठ २) । जयधवला (भाग १, पृ० ५,१२,२७,८८, ९६) में ही चुण्णिसुत्त करके बहुलता से उनका उल्लेख पाया जाता है । इसी प्रकार आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि द्वारा प्रणीत षटखण्डागम की धवला टीका (....तेणवि अणुभागसंकमे सिस्साणुग्गहट्ठम चुण्णिसुत्ते लिहिदो-पुस्तक १२ पृ० २३२) में भी चुण्णिसुत्त नाम से उनका निर्देश पाया जाता है ।
आचार्य इन्द्रनन्दि प्रणीत श्रुतावतार में उल्लेख है कि-आ० यतिवृषभ ने उन गाथाओं पर वृत्तिसूत्र सूत्र से छह हजार प्रमाण चूर्णिसूत्रों की रचना की ।
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