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________________ (११) (आ० मल्लिषेण द्वारा आ० हेमचन्द्र के अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका स्तवन पर लिखित टीका) आदि ऐसे शताधिक टीका ग्रन्थ हैं, जो मूलग्रन्थ की अपेक्षा टीका के नाम ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय हैं । उपलब्ध व्याख्या साहित्य के अध्ययन से स्पष्ट है कि अर्धमागधी प्राकृत आगम आदि साहित्य पर जैनाचार्यों ने मुख्यत: पाँच प्रकार के व्याख्या साहित्य का निर्माण किया है-१. निज्जुत्ति (नियुक्ति), २. भास (भाष्य), ३. चुण्णि (चूर्णि), ४. संस्कृत टीकायें तथा ५. लोकभाषाओं में रचित व्याख्यायें । यहाँ इनका क्रमशः परिचय प्रस्तुत है ।। १. नियुक्ति-आगमों पर प्राकृत भाषा में पद्यबद्ध यह बहुत प्राचीन व्याख्या पद्धति है । निज्जुत्ता ते अत्था जं बद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती' अर्थात् जिसके द्वारा सूत्र के साथ अर्थ का निर्णय होता है, वह नियुक्ति है । आ० वट्टकेर के अनुसार- "जुत्तित्ति उवायत्ति य णिरवयवा होदि णिज्जुत्ती" (मूला० ७) अर्थात् युक्ति और उपाय एक हैं, अत: सम्पूर्ण उपाय को नियुक्ति कहते हैं । वस्तुत: नियुक्तियों में मूलग्रन्थ के प्रत्येक पद का व्याख्यान न कर विशेष पारिभाषिक शब्दों का ही व्याख्यान किये जाने की पद्धति होती है । इनकी प्रसिद्ध निक्षेप कथन शैली की यह विशेषता होती है कि किसी एक पद के सम्भावित अनेक अर्थ करने के बाद उनमें से अप्रस्तुत अर्थों का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ का ग्रहण किया जाता है । अर्धमागधी के मुख्यत: निम्नलिखित दस आगमों पर नियुक्तियों की रचना आ० भद्रबाह ने की है-आवश्यकसूत्र, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार, सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित । इनके रचयिता प्रथम आ० भद्रबाहु हैं या द्वितीय—यह अभी पूरी तरह निर्णीत नहीं है, किन्तु कुछ विद्वानों द्वारा द्वितीय भद्रबाहु ही नियुक्तिकार के रूप में मान्य शौरसेनी प्राकृत की दिगम्बर परम्परा में कतिपय कारणों से मूलअंग आदि आगमों को भले ही लुप्त मान लिया गया हो, किन्तु किसी न किसी रूप में काफी कुछ आगमज्ञान आज भी यहाँ सुरक्षित है । षटखण्डागम, कसायपाहुड, भगवतीआराधना, मूलाचार, तिलोयपण्णत्ति आदि तथा आ० कुन्दकुन्द का १. आवश्यक नियुक्ति भाग १, गाथा ८२, संपा० डॉ० समणी कुसुमप्रज्ञा, प्रका०-जैन विश्वभारती संस्थान लाडनूं (राज०) सन् २००१ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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