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आरोह-अवरोह आदि का विशेष सजगता के साथ ध्यान ही नहीं रखा, अपितु विपन्न रहकर भी अपनी सन्तति एवं शिष्य परम्परा को वेद की विभिन्न शाखाओं को बचपन से ही कण्ठस्थ कराके श्रुति मौखिक-परम्परा से उन्हें स्मरण शक्ति द्वारा सुरक्षित रखा । यही कारण है कि वेदों की विभिन्न शाखाओं के शताधिक वेदपाठी हजारों वर्षों से चली आ रही परम्परा को आज भी मूलरूप में सुरक्षित रखे हुए हैं । इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकारें भी विविध प्रकार से भरपूर आर्थिक सहयोग प्रदान करती हैं । आज भी वेदों का अध्ययन कराने वाले शताधिक गुरुकुल देश के विभिन्न क्षेत्रों में इसी उद्देश्य से चलाये जा रहे हैं, जहाँ अल्पवय से ही बच्चों को इस परम्परा में दीक्षित कर वेदों का ज्ञान कराया जा रहा है।
यद्यपि जैन. परम्परा ने वेदों की अपौररुषेयता का भले ही खण्डन किया हो, किन्तु अपौरुषेयता की अवधारणा ने भी वेदों के मूलस्वरूप को सुरक्षित रखने में अहं भूमिका का निर्वाह किया । क्योंकि अपौरुषेयता की मान्यता के कारण कोई पुरुष उसमें एक मात्रा तक का परिवर्तन करने का अधिकारी नहीं रह जाता, अत: वेद और 'वेदों की प्राय: सभी शाखायें मूलरूप में आज भी यथावत् सुरक्षित है । किन्तु जैन परम्परा का स्वरूप ही इससे अलग रहा । अत: मूल आगमों की विपुल ज्ञाननिधि को हम पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं रख सके । इसीलिए जैन आगमों का बहुत बड़ा भाग कालक्रम से विस्मृत और लुप्त होता चला गया । क्योंकि उपलब्ध प्राचीन साहित्य में आचारांग आदि मूल अंग आगमों के बृहद् परिमाण के जो उल्लेख मिलते हैं, उतने और वैसे वर्तमान में उपलब्ध नहीं मिलते । - प्राकृत भाषा के वर्तमान में उपलब्ध विशाल आगमज्ञान की पूर्वोक्त दोनों परम्पराओं की अलग-अलग पहचान अब भाषाओं के माध्यम से भी होने लगी है। अत: जब हम व्यवहार में अर्धमागधी आगम परम्परा कहते हैं, तब इसका सीधा उद्देश श्वेताम्बर जैन परम्परा के उपलब्ध आगमों को सन्दर्भित करने का होता है । इसी प्रकार जब हम व्यवहार में शौरसेनी प्राकृत आगम परम्परा कहते हैं, तब इसका सीधा उद्देश दिगम्बर जैन परम्परा के आगम ग्रन्थों को सन्दर्भित करना होता है।
आगमों के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण आवश्यक–यहाँ यह भी विशेष ध्यातव्य है और पहले ही कहा गया है कि श्वेताम्बर जैन परम्परा में जहाँ बारह
अंग आगमों में मात्र अन्तिम अंग दृष्टिवाद का लोप माना जाता है, वहीं दिग• म्बर परम्परा इसी दृष्टिवाद अंग को षटखण्डागम और कसायपाहुड आदि आंशिक
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