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( ३ )
इन छह आवश्यकों के भेदों का कथन पन्द्रहवीं गाथा के माध्यम से प्रारम्भ किया है । इसके बाद इन्हीं छह आवश्यकों में प्रत्येक आवश्यक का विवेचन करने के पूर्व वे प्रत्येक आवश्यक नियुक्ति के कथन की प्रतिज्ञा करते हैं ।
प्रथम सामायिक आवश्यक नियुक्ति के कथन की प्रतिज्ञा इस प्रकार की
सामाइयणिज्जुत्ती वोच्छामि जहाकमं समासेण ।
आयरियपरंपराए जहागदं आणुपुव्वीए ।।१६।। सामायिक की तरह आचार्य वट्टकेर ने प्रत्येक आवश्यक के विवेचन के पूर्व उसके कथन की प्रतिज्ञा की है । प्रत्येक आवश्यक के नाम के साथ वे नियुक्ति शब्द भी जोड़ते हैं । यथा पूर्वोक्त गाथा में “सामायिक नियुक्ति” कहा है । इसी तरह वे प्रत्येक आवश्यक कथन करने के बाद उसके संक्षेप कथन की समाप्ति की सूचना और आगे कहे जाने वाले आवश्यक की सूचना, एक ही साथ करते हैं । यथा
सामाइयणिज्जुत्ती एसा कहिया मए समासेण । चउवीसयणिज्जुत्ती एतो उड्ढे पवक्खामि ।।३६।। चउवीसयणिज्जुत्ती एसा कहिया मए समासेण ।
वंदणणिज्जुत्ती पुण एत्तो उढे पवक्खामि ।।७३।। . इस प्रकार प्रत्येक आवश्यक कथन के साथ ही सीधे निक्षेप पद्धति से प्रत्येक आवश्यक की व्याख्या अर्थात् विवेचन प्रारम्भ करते हैं । यथा.. णामट्ठवणा दव्वे खेत्ते काले तहेव भावे य ।
सामाइयसि एसो णिक्खेओ छविओ णेओ ।।१७।। __ अन्तिम षष्ठ कायोत्सर्ग आवश्यक नियुक्ति के विवेचन के बाद इसका उपसंहार इस प्रकार किया है
काउस्सग्गणिजुत्ती एसा कहिया मए समासेण ।
- संजमतवड्डियाणं णिग्गंथाणं महरिसीणं ।।१८२।। . अर्थात् संयम, तप और ऋद्धि के इच्छुक, निग्रंथ महर्षियों के लिए मैंने (आ० वट्टकेर ने) संक्षेप में यह कायोत्सर्ग नियुक्ति कही है। .. ..सभी आवश्यकों के कथन के बाद इनका पालन करने वाले पात्र की अपेक्षा से इनके पालन का फल भी दो प्रकार से करते हुए षडावश्यक चूलिका कहते हैं
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