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णमोकार महामंत्र के माहात्म्य का उल्लेख-इस नियुक्ति में यह एक विशेषता स्पष्ट हुई कि णमोकार महामन्त्र की महत्ता प्रकट करने वाली जो बहु प्रचलित गाथा आनुषांगिक रूप में जन-जन में प्रसिद्ध है, वह अनुष्टुप छन्द वाली गाथा यहाँ विद्यमान है । वह इस प्रकार है
एसो पंच णमोयारो सव्वपावपणासणो ।
मंगलेसु य सव्वेसु पढमं हवदि मंगलं ।।१३।। अर्थात् यह णमोकार महामन्त्र सभी पापों का नाश करने वाला होने से सभी मंगलों में प्रथम मंगल है ।
प्रस्तुत मूल-गाथा का आचार्य वट्टकेर की इस आवश्यक नियुक्ति में उल्लेख होने का इसलिए भी महत्त्व है । क्योंकि णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयारीयाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं-इस पवित्र णमोकार महामन्त्र के बाद आनुषांगिक रूप में बोली जाने वाली पूर्वोक्त गाथा है । अत: जैसे आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि प्रणीत षट्खण्डागम में साहित्यिक लिखित प्रमाण के रूप में सम्पूर्ण णमोकार महामन्त्र का प्रथम उल्लेख पाया जाता है, उसी प्रकार इस महामन्त्र की महत्ता प्रकट करने वाली पूर्वोक्त गाथा भी आचार्य वट्टकेर की इस आवश्यक नियुक्ति में साहित्यिक लिखित प्रमाण के रूप में विद्यमान है। इससे भी प्रस्तुत आवश्यक नियुक्ति की महत्ता और प्राचीनता सिद्ध होती है । यद्यपि भद्रबाहु (द्वितीय) प्रणीत आवश्यक नियुक्ति की कुछ प्रतियों में भी (सं० ६३८/१) यह गाथा विद्यमान है, पर कुछ में नहीं मिलती । ___ आवश्यक और नियुक्ति का निरुक्त-इस णमोकार महामन्त्र के माहात्म्य के बाद मात्र एक ही गाथा में आवश्यक नियुक्ति के निरुक्त का कथन आचार्य वट्टकेर ने इस प्रकार किया है
ण वसो अवसो अवसस्सकम्ममावस्सयंति बोधव्वा ।
जुत्तित्ति उवायत्ति य णिरवयवा होदि णिज्जुत्ती ।।१४।। __अर्थात् जो वश में नहीं है, वह अवश है । उस अवश (मुनि) की क्रिया को आवश्यक जानना चाहिए । युक्ति और उपाय एक हैं । इस प्रकार सम्पूर्ण उपाय को नियुक्ति कहते हैं ।
आवश्यक के छह भेद और उनकी कथन पद्धति-आवश्यक और नियुक्ति–इन दोनों शब्दों का निरुक्त करने के बाद आचार्यवर्य वट्टकेर ने सीधे सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग
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