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प्रस्तावना
प्रस्तुत आवश्यक नियुक्ति क्यों ?
आचार्य वट्टकेर प्रणीत शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध प्रस्तुत मूलाचारगत “आवश्यक नियुक्ति” मूल-आगम परम्परा के रूप में बहुत प्राचीन (लगभग पहली-दूसरी शती के आसपास की) रचना होते हुए भी स्वतन्त्र नाम और स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में प्रकाशन की दृष्टि से नवीन है । अभी तक यह आचार्य वट्टकेर प्रणीत मूलाचार नामक श्रमणाचार विषयक प्राचीन आगम ग्रन्थ का सप्तम "षडावश्यकाधिकार" मात्र था । वहाँ तो यह अभी भी इसी नाम और क्रम में विद्यमान है और रहेगा भी, किन्तु स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में प्रकाशन का अपना अलग ही महत्त्व और ऐतिहासिक कदम है । इसके प्रकाशन से अनेक सम्भावनाओं का जन्म होगा ।
___ यह कार्य इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रस्तुत आवश्यक नियुक्ति का सीधा सम्बन्ध तीर्थंकर महावीर की वाणी (दिव्यध्वनि) से जुड़ा है । आचार्य वट्टकेर को यह आगम एवं आचार्य परम्परा से प्राप्त हुई, जिसे उन्होंने अति संक्षेप करके मात्र एक सौ नवासी (१८९) गाथाओं में सभी छह आवश्यकों का सारगर्भित स्वरूप विवेचन बहुत कुशलता और सफलता के साथ प्रस्तुत कर दिया है । वे मंगलाचरण में पंच परमेष्ठी को नमन करने के बाद प्रस्तुत आवश्यक-नियुक्ति कहने की प्रतिज्ञा और उद्देश्य कथन करते हुए कहते भी
आवासयाण
आवासयणिज्जुती वोच्छामि जहाकमं समासेण ।
आयरियपरंपराए जहागदा आणुपुवीए ।।२।। _अर्थात् मैं पूर्व-आचार्य परम्परा के अनुसार और आगम के अनुरूप संक्षेप रूप में यथाक्रम से आवश्यक नियुक्ति कहता हूँ। __सामायिक आदि षड्-आवश्यकों को सारगर्भित रूप में आगम और आचार्य परम्परा के अनुसार प्रस्तुत करना-यह वट्टकेर जैसे समर्थ आचार्य के ही सामर्थ्य की बात है । क्योंकि आचार्य भद्रबाह (द्वितीय) प्रणीत मान्य अर्धमागधी आवश्यक नियुक्ति में बहुत विस्तार से विवेचन होने से वह कई गुणी विशाल और बृहदाकार है । __आचार्य वट्टकेर ने मंगलाचरण के बाद आरम्भिक मात्र ग्यारह गाथाओं में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु-इन पंचपरमेष्ठी का संक्षिप्त स्वरूप निरुक्ति पूर्वक प्रस्तुत किया है ।
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