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________________ १७२ २. अर्थनिमित्तक विनय - अपने प्रयोजन अथवा स्वार्थवश हाथ जोड़ना । जैन श्रमण के षड्- आवश्यक : एक तुलनात्मक अध्ययन ५. मोक्ष विनय - मोक्ष विनय के पाँच भेद हैं- दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और औपचारिक । विनय तप के प्रसंग में भी इन्हीं पाँच भेदों का वर्णन है ।" मोक्षविनय के पाँच भेद १. दर्शनविनय - जिनेन्द्र द्वारा उपदिष्ट श्रुतज्ञान में वर्णित द्रव्य-पर्यायों में दृढ़ रहना दर्शन विनय है । ६ ३. कामतन्त्र विनय — काम - - पुरुषार्थ के लिए विनय करना । २ ४. भय विनय - भय के कारण विनय करना । ३ २. ज्ञानविनय - ज्ञान को सीखना, चिन्तवन करना, ज्ञान का परोपदेश करना, ज्ञानानुसार न्यायपूर्वक प्रवृत्ति करना – ये सब ज्ञान विनयी के लक्षण हैं। कहा भी है कि ज्ञानी मोक्ष को जाता है, वही पापों का त्याग करता है, वही नवीन कर्मों का ग्रहण नहीं करता और वही ज्ञान के द्वारा चारित्र का पालन करता है । अतः ज्ञान में विनय और उसका पालन करना ज्ञान विनय है ।" ज्ञानविनय के आठ भेद - १. कालविनय - अर्थात् काल शुद्धिपूर्वक द्वादशांगों का अध्ययन करना, २ . विनयरूप ज्ञान विनय - अर्थात् हस्त-पाद साफ करके पद्मासनपूर्वक अध्ययन करना, ३ . उपधान विनय - अवग्रह विशेष से पढ़ना, ४. बहुमान विनय — ग्रन्थ और गुरु का आदर एवं उनके गुणों की स्तुति करना, ५ . अनिह्नव विनय - शास्त्र और गुरु को न छिपाना, ६. व्यंजनशुद्ध - विनय - व्यंजन शुद्ध पढ़ना, ७. अर्थशुद्ध विनय - अर्थ शुद्ध पढ़ना और ८. व्यंजनार्थोभय शुद्ध विनय - व्यंजन और अर्थ दोनों शुद्धिपूर्वक पढ़ना ।' ५. ६. ७. १. अंजलिकरणं च अत्थकदे - मूलाचार ७/८५ । २- ३. एमेव कामतंते भयविणओ चेव आणुपुव्वीए - वही ७ / ८६ । ४. ८. ९. मूलाचार ७/८७ । वही ५/१६७ । मूलाचार ७/८८ । णाणं सिक्खदि णाणं गुणेदिणाणं परस्स उवदिसदि । णाणेण कुणदि णायं णाणविणीदो हवदि एसो ।। वही ५/१७१ णाणी गच्छदि णाणी वंचदि णाणी णवं च णादियदि । णा कुदि चरणं तम्हा णाणे हवे विणओ | वही ७/८९ वही ५/१७०, भगवती आराधना ११३ । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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