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आवश्यकनियुक्तिः
एवंगुण पूर्वोक्तिमन:संकल्पो मन:परिणाम: महार्थ: कर्मक्षयहेतुः प्रशस्त: शोभनो विश्वस्त: सर्वेषां विश्वासयोग्य: संकल्प इत सम्यग्ध्यानमिति विजानीहि ।
जिनशासने सम्मतं सर्वं समस्तमिति, एवंविशिष्टं ध्यानं कायोत्सर्गेण स्थितस्य योग्यमिति ॥१७९॥
अप्रशस्तमाहपरिवारइड्ढिसक्कारपूयणं असणपाणहेऊ वा । लयणसयणासणं भत्तपाणकामट्ठहेऊ वा ।।१८०।।
परिवारऋद्धिसत्कारपूजनं अशनपानहेतोर्वा ।
लयनशयनासनभक्तपानकामार्थहेतोर्वा ॥१८०॥ परिवारः पुत्रकलत्रादिकः शिष्यसामान्यसाधुश्रावकादिकः ऋद्धिर्विभूतिहस्त्यश्वद्रव्यादिका, सत्कार: कार्यादिष्वग्रतः करणं पूजनमर्चनं अशनं भक्तादिकं पानं सुगन्धजलादिकं हेतुः कारणं वा विकल्पार्थः ।
पकल्पाथः ।
क्षमा-क्रोध के उपशमन विषयक परिणाम, निग्रह-इन्द्रियों के निग्रह की अभिलाषा, आर्जव और मार्दव रूप भाव, मुक्ति-सर्वसंग के त्याग का परिणाम, विनय-विनय का भाव और श्रद्धान-तत्त्वों में श्रद्धा रूप परिणाम-ये सब परिणाम शुभ (प्रशस्त) हैं ॥१७८॥
इन गुणों से विशिष्ट जो मन का संकल्प अर्थात् मन का परिणाम है वह महार्थ कर्म के क्षय में हेतु हैं, प्रशस्त-शोभन है और विश्वस्त-सभी के विश्वास योग्य है । यह संकल्प सम्यक् समीचीन ध्यान है ।
पूर्वोक्त ये सभी परिणाम जिनशासन को मान्य हैं । अर्थात इस प्रकार का ध्यान कायोत्सर्ग से स्थित हुए मुनि के लिए योग्य (उचित) है-ऐसा जानो ॥१७९॥
अप्रशस्त (अशुभ) मन:परिणाम कहते हैं
गाथार्थ-परिवार, ऋद्धि, सत्कार, पूजा अथवा भोजन-पान-इनके लिए अथवा लयन, शयन, आसन, भक्त, पान, काम और अर्थ-इन सबके लिए जो मन: परिणाम होते हैं, वे सब अप्रशस्त (अशुभ) हैं ॥१८०॥
___ आचारवृत्ति-पुत्र, कलत्र आदि अथवा शिष्य, सामान्य साधु व श्रावक आदि परिवार कहलाते हैं । हाथी, घोड़े, द्रव्य आदि का वैभव ऋद्धि है । किसी कार्य आदि में आगे करना सत्कार है, अर्चा करना पूजन है, भोजन आदि अशन है और सुगन्ध जल आदि पान है । इनके लिए कायोत्सर्ग करना अप्रशस्त है।
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