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________________ आवश्यकनियुक्तिः १४१ तथाविज्जाचरणमहव्वदसमाधिगुणबंभचेरछक्काए । खमणिग्गह अज्जवमद्दवमुत्तीविणए च सद्दहणे ।।१७८।। विद्याचरणमहाव्रतसमाधिगुणब्रह्मचर्यषट्कायेषु । क्षमानिग्रहार्जवमार्दवमुक्तिविनयेषु च श्रद्धाने ॥१७८।। विद्यायां द्वादशांगचतुर्दशपूर्वविषयः संकल्पः, आचरणे भिक्षाशुद्ध्यादिविषयः परिणामः, महाव्रतेषु अहिंसादिविषयपरिणामः, समाधौ विषयसंन्यसनेन पंचनमस्कारस्तवनपरिणामः, गुणेषु गुणविषयपरिणामः, ब्रह्मचर्ये मैथुनपरिहारविषयपरिणामः, षट्कायेषु · पृथिवीकायादिरक्षणपरिणामः, क्षमायां क्रोधोपशमनविषयपरिणाम:, निग्रह इन्द्रियनिग्रहविषयोऽभिलाषः, आर्जवमार्दवविषयः परिणामः, मुक्तौ सर्वसंगपरित्यागविषयपरिणामः, विनयविषयः परिणामः, श्रद्धानविषय: परिणामः ॥१७८॥ उपसंहरन्नाहएवंगुणो महत्थो मणसंकप्पो पसत्थ वीसत्थो । संकप्पोत्ति वियाणह जिणसासणसम्मदं सव्वं ।।१७९।। एवंगुणो महार्थ: मन:संकल्प: प्रशस्तो विश्वस्तः । . संकल्प इति विजानीहि जिनशासनसंमतं सर्वं ॥१७९॥ मन का संकल्प होना, सो इन गुणों से विशिष्ट महार्थ, प्रशस्त और विश्वस्त संकल्प है । यह सब जिनशासन में सम्मत है-ऐसा जानो ॥१७९॥ ...' आचारवृत्ति-दर्शन, ज्ञान और चारित्र में जो मन का संकल्प है वह शुभसंकल्प है, ऐसे ही उयोग, ज्ञानोपयोग वा दर्शनोपयोग में जो चित्त का व्यापार, संयम के विषय में परिणाम, कायोत्सर्ग के लिए ध्यान, प्रत्याख्यान के ग्रहण में परिणाम तथा करण में अर्थात् पंचमरमेष्ठी को नमस्कार, छह आवश्यक क्रिया, आसिका और निवधिका इन तेरह क्रियाओं के विषय में शुभयोग तथा प्रणिधान-धर्मध्यान आदि विषयक परिणाम और समिति विषयक जो परिणाम है वह सब शुभ हैं ॥१७७॥ विद्या-द्वादशांग आगम और चौदह-पूर्व विषयक संकल्प, आचरणभिक्षाशुद्धि आदि रूप परिणाम, महाव्रत-अहिंसा आदि पाँच महाव्रत विषयक परिणाम, समाधि-विषयों के संन्यसन अर्थात् त्याग, पंचनमस्कार स्तवनरूप परिणाम, गुणों में गुणविषयक परिणाम, ब्रह्मचर्य अर्थात् मैथुन के त्यागरूप परिणाम, षट्काय-छह प्रकार के जीवनिकायों की रक्षा का परिणाम, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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