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आवश्यकनियुक्तिः
प्रत्याख्यायको जीवः संयमोपेतः प्रत्याख्यानं परित्यागपरिणाम: प्रत्याख्यातव्यं द्रव्यं सचित्ताचित्तमिश्रकं सावधं निरवद्यं वा । एवं त्रिप्रकार प्रत्याख्यानस्वरूपोऽन्यथाऽनुपप्तेरिति । तत्त्रिविधमप्यतीते काले प्रत्युत्पन्ने कालेऽनागते च काले भूतभविष्यद्वर्तमानकालेष्वपि ज्ञातव्यमिति ॥१३२॥ .
प्रत्याख्यायकस्वरूपं प्रतिपादयन्नाहआणाय जाणणावि य उवजुत्तो मूलमज्झणिद्देसे । सागारमणागारं अणुपालेंतो दढधिदीओ ।।१३३।।
आज्ञया ज्ञापकेनापि च उपयुक्तो मूलमध्यनिर्देशे ।
सागारमनागारं अनुपालयन् दृढधृतिकः ॥१३३।। आणाविय आज्ञया गुरूपदेशेनार्हदाद्याज्ञया चारित्रश्रद्धया, जाणणावि य ज्ञापकेन गुरुनिवेदनेनाथवा परमार्थतो ज्ञात्वा दोषस्वरूपं तपोहेतुं बाह्याभ्यन्तरं प्रविश्य ज्ञात्वाऽपि चोपयुक्तः षट्प्रकारसमन्वितः मूले आदौ ग्रहणकाले मध्ये
आचारवृत्ति--संयम से युक्त जीव (मुनि) प्रत्याख्यायक हैं, अर्थात् प्रत्याख्यान करने वाले हैं । त्यागरूप परिणाम प्रत्याख्यान है । सावध हों या निरवद्य, सचित्त, अचित्त तथा मिश्र-ये तीन प्रकार के द्रव्य प्रत्याख्यातव्य हैं अर्थात् प्रत्याख्यान के योग्य हैं । इन तीन प्रकार से प्रत्याख्यान के स्वरूप की अन्यथानुपपत्ति है अर्थात् इन प्रत्याख्यायक आदि तीन प्रकार के सिवाय प्रत्याख्यान का कोई स्वरूप नहीं है । ये तीनों ही भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यतकाल की अपेक्षा से तीन-तीन भेदरूप हो जाते हैं । अर्थात् भूतप्रत्याख्यायक, वर्तमान प्रत्याख्यायक और भविष्यत् प्रत्याख्यायक । भूत प्रत्याख्यान, वर्तमान प्रत्याख्यान और भविष्यत् प्रत्याख्यान । भूतप्रत्याख्यातव्य, वर्तमान प्रत्याख्यातव्य और भविष्यत् प्रत्याख्यातव्य ॥१३२॥
प्रत्याख्यायक का स्वरूप प्रतिपादित करते हैं
गाथार्थ—आज्ञा से और गुरु के निवेदन से उपयुक्त हुआ क्रिया के आदि, मध्य और अन्त में अविकल्प (सागार) और निर्विकल्प (अनगार) संयम का पालन करता हुआ दृढ़ धैर्यवान् साधु प्रत्याख्यायक होता है ॥१३३॥ ___आचारवृत्ति-आज्ञा-गुरु का उपदेश, अर्हत आदि की आज्ञा और चारित्र की श्रद्धा-ये आज्ञा शब्द से ग्राह्य हैं । ज्ञापक बतलाने वाले गुरु । इस तरह गुरु
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क. त्रिप्रकार एवं ।
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