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आवश्यकनियुक्तिः
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मिथ्यात्वासंयमकषायादीनां त्रिविधेन परिहारो भावप्रत्याख्यानं भावप्रत्याख्यानप्राभृतज्ञायकस्तद्विज्ञानं प्रदेशादित्येवमेष नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावविषयः प्रत्याख्याने निक्षेप: षड्विधो ज्ञातव्य इति ।
प्रतिक्रमणप्रत्याख्यानयोः को विशेष ? इति चेनैष दोषोऽतीतकालविषयातीचारशोधनं प्रतिक्रमणमतीतभविष्यद्वर्तमानकालविषयातिचारनिर्हरणं प्रत्याख्यानमथवा व्रताद्यतीचारशोधनं प्रतिक्रमणमतीचारकारणसचित्ताचित्तमिश्रद्रव्यविनिवृत्तिस्तपोनिमित्तं प्रासुकद्रव्यस्य च निवृत्तिः प्रत्याख्यानं यस्मादिति ॥१३१॥
प्रत्याख्यायक-प्रत्याख्यान-प्रत्याख्यातव्य-स्वरूपप्रतिपादनार्थमाहपच्चक्खाओ पच्चक्खाणं पच्चक्खियव्वमेवं तु । तीदे पच्चुप्पण्णे अणागदे चेव कालहि ।।१३२।।
प्रत्याख्यापकः प्रत्याख्यानं प्रत्याख्यातव्यमेवं तु । अतीते प्रत्युत्पन्ने अनागते चैव काले ॥१३२॥
असंयम आदि के कारणभूत काल का मन-वचन-काय से परिहार करना काल-प्रत्याख्यान है । अथवा प्रत्याख्यान से परिणत हुए मुनि के द्वारा सेवित काल-प्रत्याख्यान है।
मिथ्यात्व, असंयम, कषाय आदि का मन-वचन-काय से परिहार-त्याग करना भाव प्रत्याख्यान है । अथवा भाव प्रत्याख्यान के शास्त्र के ज्ञाता जीव को या उसके ज्ञान को या उसके आत्मप्रदेशों को भी भाव प्रत्याख्यान कहते हैं । इस प्रकार से नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव विषयक छह प्रकार का निक्षेप प्रत्याख्यान में घटित किया गया है । . शंका-प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान में क्या अन्तर है ?
भूतकाल विषयक अतीचारों का शोधन करना प्रतिक्रमण है, और भूत भविष्यत् तथा वर्तमान-इन तीनों काल विषयक अतीचारों का निरसन करना प्रत्याख्यान है । अथवा व्रत आदि के अतिचारों का शोधन प्रतिक्रमण है तथा अतीचार के लिए कारणभूत ऐसे सचित्त, अचित्त एवं मिश्र द्रव्यों का त्याग करना तथा तप के लिए प्रासुकद्रव्य का भी त्याग करना प्रत्याख्यान है ॥१३१॥
गाथार्थ-प्रत्याख्यायक, प्रत्याख्यान और प्रत्याख्यातव्य-ये तीनों ही भूत, वर्तमान और भविष्यत् काल में होते हैं ॥१३२॥
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