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आवश्यकनियुक्तिः
अयोग्याः स्थापनाः पापबंधहेतुभूताः मिथ्यात्वादिप्रवर्तका अपरमार्थरूपदेवतादिप्रतिबिम्बानि पापकारणद्रव्यरूपाणि न कारयितव्यानि नानुमन्तव्यानि इति स्थापनाप्रत्याख्यानम् । प्रत्याख्यानपरिणतप्रतिबिम्बं च सद्भावासद्भावरूपं स्थापनाप्रत्याख्यानमिति ।।
पापबन्धकारणद्रव्यं सावधं निरवद्यमपि तपोनिमित्तं त्यक्तं न भोक्तव्यं न भोजयितव्यं नानुमन्तव्यमिति द्रव्यप्रत्याख्यानं प्राभृतज्ञायकोऽनुपयुक्तस्तच्छरीरं भावी जीवस्तद् व्यतिरिक्तं च द्रव्यप्रत्याख्यानम् । असंयमादिहेतुभूतस्य क्षेत्रस्य परिहारः क्षेत्रप्रत्याख्यानं, प्रत्याख्यानपरिणतेन सेवितप्रदेशे प्रवेशो वा क्षेत्रप्रत्याख्यानम् ।
असंयमादिनिमित्तभूतस्य' कालस्य त्रिधा परिहार: कालप्रत्याख्यानं प्रत्याख्यानपरिणतेन सेवितकालो वा ।
देनी चाहिए-यह नाम प्रत्याख्यान है । अथवा प्रत्याख्यान नाम मात्र किसी का रख देना नाम प्रत्याख्यान है ।
____ अयोग्य स्थापना-मूर्तियाँ पापबन्ध के लिए कारण हैं, मिथ्यात्व आदि की प्रवर्तक हैं, और अवास्तविक रूप देवता आदि के जो प्रतिबिम्ब हैं वे भी पाप के कारण रूप द्रव्य हैं ऐसी अयोग्य स्थापना को न करना चाहिए, न कराना चाहिए
और करते हुए को अनुमोदना देना चाहिए—यह स्थापना,प्रत्याख्यान है । अथवा प्रत्याख्यान से परिणत हुए मुनि आदि का प्रतिबिम्ब जो कि तदाकार हो या अतदाकार, वह भी स्थापना प्रत्याख्यान है ।।
पापबन्ध के कारणभूत सावध, सदोष द्रव्य तथा तप के निमित्त त्याग किए गये जो निरवद्य-निर्दोष द्रव्य भी हैं ऐसे सदोष और त्यक्त रूप निर्दोष द्रव्य को भी न ग्रहण करना चाहिए, न कराना चाहिए और न अनुमोदना देनी चाहिए । यहाँ आहार सम्बन्धी तो खाने में अर्थात् भोग में आयेगा और उसके अतिरिक्त भी द्रव्य उपकरण आदि उपभोग में आयेंगे । किन्तु 'भोक्तव्यं' क्रिया से यहाँ पर मुख्यतया भोजन सम्बन्धी द्रव्य की विवक्षा है, इस तरह यह द्रव्य प्रत्याख्यान है अथवा प्रत्याख्यान शास्त्र का ज्ञाता और उसके उपयोग से रहित जीव, उसका शरीर, भावी जीव और उससे व्यतिरिक्त ये सब द्रव्य प्रत्याख्यान हैं । ____ असंयम आदि के लिए कारण भूत क्षेत्र का परिहार करना क्षेत्र-प्रत्याख्यान है, अथवा प्रत्याख्यान से परिणत हुए मुनि के द्वारा सेवित प्रदेश में प्रवेश करना क्षेत्र प्रत्याख्यान है।
१.
क देशो वा ।
२.
क दिहेतुभूतस्य ।
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