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आवश्यक नियुक्तिः
प्रतिक्रमणं कृतकारितानुमतातिचारान्निवर्त्तनं, दिवसे भवं दैवसिकं दिवसमध्ये नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावाश्रितातीचारस्य कृतकारितानुमतस्य मनोवचनकायैः शोधनं, तथा रात्रौ भवं रात्रिकं रात्रिविषयस्य षड्विधातीचारस्य कृतकारितानुमंतस्य त्रिविधेन निरसनं रात्रिकं, ईर्यापथे भवमैर्यापथिकं षड्जीवनिकायविषयातीचारस्य निरसनं ज्ञातव्यं ।
पक्षे भवं पाक्षिकं पञ्चदशाहोरात्रविषयस्य षड्विधनामादिकारणस्य कृतकारितानुमतस्य मनोवचनकायैः परिशोधनं चतुर्मासेषुभवं चातुर्मासिकं, संवत्सरे भवं सांवत्सरिकम् ।
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आचारवृत्ति—कृत, कारित और अनुमोदना से हुए अतीचार को दूर करना प्रतिक्रमण है । इसके सात भेद हैं। उन्हीं को क्रम से दिखाते हैं ।
१. दैवसिक - दिवस में हुए दोषों का प्रतिक्रमण दैवसिक है । दिवस के मध्य नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आश्रय से कृत, कारित और अनुमोदना रूप जो अतिचार हुए हैं उनका मन-वचन-काय से शोधन करना दैवसिक प्रतिक्रमण है ।
२. रात्रिक - रात्रि सम्बन्धी दोषों का प्रतिक्रमण रात्रिक है अर्थात् रात्रि विषयक अतीचार, जो कि कृत, कारित व अनुमोदना से किए गये हैं एवं नाम स्थापना आदि छह निमित्तों से हुए हैं, उनका मन-वचन-काय से निरसन करना रात्रिक प्रतिक्रमण है ।
३. ऐर्यापथिक – ईर्यापथ सम्बन्धी प्रतिक्रमण अर्थात् ईर्यापथ से चलते हुए मार्ग में छह जीव निकाय के विषय में जो अतिचार हुआ है उसको दूर करना ऐर्यापथिक है ।
४. पाक्षिक – पक्ष सम्बन्धी प्रतिक्रमण, पन्द्रह अहोरात्र विषयक जो दोष हुए हैं, जो कि कृत, कारित और अनुमोदना से एवं नाम आदि छह के आश्रय हुए हैं उनका मन-वचन-काय से शोधन करना सो पाक्षिक प्रतिक्रमण है ।
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५. चातुर्मासिक - चार महीने सम्बन्धी प्रतिक्रमण ।
६. सांवत्सरिक - एक वर्ष सम्बन्धी प्रतिक्रमण ।
चातुर्मास के मध्य और संवत्सर के मध्य हुए अतीचार जो कि नाम, स्थापना आदि छह कारणों से अथवा बहुत से भेदों से सहित और कृत, कारित और अनुमोदना से होते हैं उनको मन वचन काय से दूर करना सो चातुर्मासिक और वार्षिक कहलाते हैं ।
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