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________________ आवश्यकनियुक्तिः वन्दनानियुक्तिं संक्षेपयन् प्रतिक्रमणे नियुक्तिं सूचयन्नाहवंदणणिज्जुत्ती पुण एसा कहिया मए समासेण । पडिक्कमणणिज्जुत्ती पुणो एतो उड्डे पवक्खामि ।।११०।। वंदनानियुक्तिः पुनः एषा कथिता मया समासेन । प्रतिक्रमणनियुक्तिं पुनः इत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि ॥११०॥ वन्दनानियुक्तिरेषा पुन: कथिता मया संक्षेपेण प्रतिक्रमणनियुक्तिं पुनरित ऊर्ध्वं वक्ष्य इति ॥११०॥ तां निक्षेपस्वरूपेणाहणामढवणा दव्वे खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो पडिक्कमणगे णिक्खेवो छव्विहो णेओ ।।१११।। नाम स्थापना द्रव्यं क्षेत्रं कालस्तथैव भावश्च । एष प्रतिक्रमणके निक्षेपः षड्विधो ज्ञेयः ॥१११॥ नामप्रतिक्रमणं पापहेतु नामातीचारान्निवर्त्तनं प्रतिक्रमणदंडकगतशब्दोच्चारणं वा, सरागस्थापनाभ्यः परिणामनिवर्त्तनं स्थापनाप्रतिक्रमणम् । आचारवृत्ति-शुद्ध परिणाम वाले ये आचार्य ऋद्धि और वीर्य आदि के गर्व से रहित होकर वन्दना करने वाले मुनि को धर्म और धर्म के फल में हर्ष उत्पन्न करते हुए उसके द्वारा की गई वन्दना को स्वीकार करें ॥१०९॥ ___वन्दना-नियुक्ति को संक्षिप्त करके अब आचार्य प्रतिक्रमण-नियुक्ति को कहते हैं गाथार्थ-मैंने संक्षेप से यह वन्दना-नियुक्ति कही है अब इसके बाद प्रतिक्रमण नियुक्ति को कहूँगा ॥११०॥ आचारवृत्ति-इस प्रकार मेरे द्वारा वन्दना नियुक्ति का संक्षेप में कथन किया गया है । अब आगे प्रतिक्रमण नियुक्ति कहता हूँ ॥११०॥ उस प्रतिक्रमण नियुक्ति को निक्षेप स्वरूप से कहते हैं गाथार्थ-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव प्रतिक्रमण में यह छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए ॥१११॥ । __आचारवृत्ति—पाप के कारणभूत नामों से हुए अतिचारों से दूर होना या प्रतिक्रमण के दण्डकरूप शब्दों का उच्चारण करना नाम प्रतिक्रमण है । १. क तु अतीचारनाम्नो निव० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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