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________________ आवश्यक नियुक्तिः यस्मात्सर्वप्रयत्नेन विनयत्व नो कदाचित्परिहरेत् भवान् यस्मादल्पश्रुतोऽपि पुरुषः क्षपयति कर्माणि विनयेन तस्माद्विनयो न त्याज्य इति ॥८८॥ कृतिकर्मणः प्रयोजनं तं दत्वा प्रस्तुतायाः प्रश्नमालायास्तावदसौ केन कर्तव्यं तत्कृतिकर्म यत्पृष्टं तस्योत्तरमाह पंचमहव्वयगुत्तो संविग्गोऽणालसो अमाणी य । किदियम्म णिज्जरट्ठी कुणइ सदा ऊणरादिणिओ ।।८९।। ६५ पञ्चमहाव्रतगुप्तः संविग्नः अनालसः अमानी च । कृतिकर्म निर्जरार्थी करोति सदा ऊनरात्रिकः ॥८९॥ पंचमहाव्रतैर्गुप्तः पंचमहाव्रतानुष्ठानपरः संविग्नो धर्मफलयोर्विषये हर्षोत्कंठितदेहोऽनालसः उद्योगवान् अमाणी य अमानी च परित्यक्तमानकषायो निर्जरार्थी ऊनरात्रिको दीक्षया लघुर्यः एवं स कृतिकर्म करोति सदा सर्वकालं, पंचमहाव्रतयुक्तेन परलोकार्थिना विनयकर्म कर्त्तव्यं भवतीति सम्बन्धः ॥ ८९॥ कस्य तत्कृतिकर्म कर्त्तव्यं यत्पृष्टं तस्योत्तरमाह — आइरियउवज्झायाणं पवत्तयत्थेरगणधरादीणं । एदेसिं किदियम्मं कादव्वं णिज्जरट्ठाए ।। ९० ।। आचारवृत्ति — अतः सर्व प्रयत्न करके विनय को कदाचित् भी मत छोड़ो, क्योंकि अल्पज्ञानी पुरुष भी विनय के द्वारा कर्मों का नाश कर देता है । इसलिए विनय को सदा काल करते रहना चाहिए ॥८८॥ प्रसंग - कृतिकर्म का प्रयोजन कहकर जो प्रश्नमाला कही है, उसके प्रारम्भ में कौन पुरुष वह कृतिकर्म करता है ? इस प्रश्न का उत्तर कहते हैंगाथार्थ – जो पाँच महाव्रतों से युक्त है, संवेगवान है, आलस्यरहित है और मान रहित है - ऐसा निर्जरा का इच्छुक हुआ एक रात्रि भी लघु मुनि हमेशा कृतिकर्म करे ॥८९॥ आचारवृत्ति — जो पाँच महाव्रतों के अनुष्ठान में तत्पर हैं, धर्म और धर्म के फल में जिनका शरीर हर्ष से रोमांचित हो रहा है, आलस्य रहित उद्यमवान हैं, मान कषाय से रहित है, कर्म निर्जरा के इच्छुक है, ऐसे मुनि दीक्षा में एक रात्रि भी यदि लघु है तो वे सर्वकाल गुरुओं की कृतिकर्मपूर्वक वन्दना करें । अर्थात् मुनियों को अपने से बड़े मुनियों की कृतिकर्म पूर्वक विनय करना चाहिए । यहाँ पर कृतिकर्म करनेवाले का वर्णन किया है ॥८९॥ कृतिकर्म किनका करने योग्य है ? इसे बतलाते हैं For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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