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आवश्यकनियुक्तिः
यतश्च पूर्वस्मिन्नेव काले विनय: प्ररूपितो जिनवरैः सर्वैः सर्वासु कर्मभूमिषु सप्तत्याधिकक्षेत्रेषु . नित्यं सर्वकालं मोक्षमार्गे मोक्षमार्गहेतोस्तस्मन्नाक्किालिको रथ्यापुरुषप्रणीतो वा शंकाऽत्र न कर्त्तव्या निश्चयेनात्र प्रवर्तितव्यमिति ।।७८॥
कतिप्रकारोऽसौ विनय इत्याशंकायामाहलोगाणुवित्तिविणओ अत्थणिमित्ते य कामतंते य । भयविणओ य चउत्थो पंचमओ मोक्खविणओ ।।७९।।
लोकानुवृत्तिविनयः अर्थनिमित्तं च कामतन्त्रं च ।
भयविनयश्च चतुर्थः पंचमः मोक्षविनयश्च ॥७९॥ लोकस्यानुवृत्तिरनुवर्तनं लोकानुवृत्तिर्नाम प्रथमो विनयः, अर्थस्य निमित्तमर्थनिमित्तं कार्यहेतुर्विनयो द्वितीयः, कामतन्त्रे कामतन्त्रहेतुः कामानुष्ठाननिमित्तं तृतीयो विनय:, भयविनयश्चतुर्थः' भयकारणेन य: क्रियते विनय: स चतुर्थः पंचमो मोक्षविनयः, एवं कारणेन पंचप्रकारो विनय इति ॥७९॥
. आचारवृत्ति-चूँकि पूर्वकाल में भी सभी जिनवरों ने एक सौ सत्तर कर्मभूमियों में हमेशा ही मोक्षमार्ग के हेतु में विनय का प्ररूपण किया है, इसलिए यह विनय आजकल के लोगों द्वारा कथित है या रथ्यापुरुष (पागलपुरुष) यत्रतत्र फिरने वाले पुरुष के द्वारा कथित है-ऐसा नहीं कह सकते । अत: इसमें शंका नहीं करनी चाहिए, प्रत्युत इस विनयकर्म में निश्चय से प्रवृत्ति करनी चाहिए । अर्थात् यह विनयकर्म सर्वज्ञदेव द्वारा कथित है ॥७८॥ .. कितने प्रकार का यह विनय है ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं
- गाथार्थ-लोकानुवृत्ति विनय, अर्थनिमित्त विनय, कामतन्त्रविनय, चौथा भयविनय और पाँचवाँ मोक्षविनय-ये विनय के पाँच भेद हैं ॥७९॥
. आचारवृत्ति-लोक की अनुवृत्ति (अनुकूलता) करना सो लोकानुवृत्ति नामक पहला विनय है । अर्थ-कार्य के हेतु विनय करना दूसरा अर्थनिमित्त विनय है । काम के अनुष्ठान हेतु विनय करना कामतन्त्र नाम का तीसरा विनय है । भय के कारण से विनय करना यह चौथा भय विनय है और मोक्ष के हेतु विनय पाँचवा मोक्षविनय-इस प्रकार पाँच प्रकार का विनय है ॥७९॥
१. . क र्थ: पंचमो।
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