________________
४८
आवश्यकनियुक्तिः
यस्माज्जितक्रोधमानमायालोभास्तस्मात्तेन कारणेन ते जिना इति भवंति येनारीणां हन्तारो जन्मन: संसारस्य च हन्तारस्तेनार्हन्त इत्युच्यन्ते ॥६०॥
येन चअरिहंति वंदणणमंसणाणि अरिहंति पूयसक्कारं । अरिहंति सिद्धिगमणं अरहंता तेण उच्चंति ।।६१।।
अर्हन्ति वन्दनानमस्कारयोः अर्हन्ति पूजासत्कारं ।
अर्हन्ति सिद्धिगमनं अर्हन्तः तेन उच्यन्ते ॥६१॥ वंदनाया नमस्कारस्य च योग्या वंदनां नमस्कारमर्हति, पूजायाः सत्कारस्य च योग्याः पूजासत्कारमर्हन्ति च यतः सिद्धिगमनस्य च योग्याः सिद्धिगमनमर्हन्ति, यस्मात्तेनाऽर्हन्त इत्युच्यन्ते ॥६१॥
किमर्थमेते कीर्त्यन्त इत्याशंकायामाहकिह ते ण कित्तणिज्जा सदेवमणुयासुरेहिं लोगेहिं । दंसणणाणचरित्ते तव विणओ जेहिं पण्णत्तो ।।६२।।
कथं ते न कीर्तनीयाः सदेवमनुजासुरैः लोकैः । दर्शनज्ञानचरित्राणां तपस: विनयो यैः प्रज्ञप्त: ॥६२॥
जिनवर और अर्हन्-इन पदों का अर्थ कहते हैं-,
गाथार्थ-क्रोध, मान, माया और लोभ को जीत चुके हैं इसलिए वे "जिन" होते हैं । शत्रुओं का और जन्म का हनन करने वाले हैं अत: वे अहंत कहलाते हैं ॥६०॥
आचारवृत्ति—जिस कारण से उन्होंने क्रोध, मान, माया और लोभ को जीत लिया है । इसी कारण से वे 'जिन' कहलाते हैं तथा जिस कारण से वे मोह आदि शत्रुओं के तथा संसार के नाश करने वाले हैं । इसी कारण से वे 'अरिहंत' इस सार्थक नाम से कहे जाते हैं ॥६०॥
अर्हन्त शब्द की और भी निरुक्ति करते हैं
गाथार्थ-वन्दना और नमस्कार के योग्य हैं, पूजा सत्कार के योग्य हैं, और सिद्धि गमन के योग्य हैं इसलिए वे 'अर्हत' कहलाते हैं ॥६१॥
आचारवृत्ति—अर्हतदेव वन्दना, नमस्कार, पूजा, सत्कार और मोक्ष गमन के योग्य हैं-समर्थ हैं अतएव वे 'अर्हत' इस सार्थक नाम से कहे जाते हैं ॥६१॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org