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________________ ४० आवश्यक नियुक्तिः कषायलोकमाह— कोधो माणो माया लोभो उदिण्णा जस्स जंतुणो । कसायलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ।। ४७ ।। • क्रोधो मानो माया लोभः उदीर्णाः यस्य जंतोः । कषायलोकं विजानीहि अनंतजिनदर्शितं ॥४७॥ यस्य जन्तोर्जीवस्य क्रोधमानमायालोभा उदीर्णा उदयमागताः तं कषायलोकं विजानीहीति अनन्तजिनदर्शितम् ॥४७॥ भवलोकमाह— इयदेवमाणुसतिरिक्खजोणि गदाय जे सत्ता । णिययभवे वट्टंता तं भवलोगं वियाणाहि ।।४८ । । नारकदेवमनुष्यतिर्यग्योनिगताश्च ये सत्त्वाः । निजभवे वर्तमाना भवलोकं तं विजानीहि ॥ ४८ ॥ • नारकदेवमनुष्यतिर्यग्योनिषु गताश्च ये जीवा निजभवे निजायुः प्रमाणे वर्तमानास्तं भवलोकं विजानीहीति ॥४८॥ पुद्गल की पर्यायों के हैं । तथा नारकपना आदि संस्थान जीव की पर्यायों के हैं । इस प्रकार से जो भी द्रव्यों के, गुणों के तथा पर्यायों के संस्थान देखे जाते हैं— उन्हें ही चिह्नलोक जानो ॥ ४६ ॥ ६. कषायलोक कहते हैं गाथार्थ — क्रोध, मान, माया और लोभ - ये जिसे जीव के उदय में आ रहे, उसे अनन्त जिनदेव के द्वारा कथित कषायलोक जानो ॥४७॥ आचारवृत्ति - जिन जीवों के क्रोधादि कषायें उदय में आ रही हैं, उन कषायों को अथवा उनसे परिणत हुए जीवों को कषायलोक कहते हैं ॥४७॥ ७. भवलोक को कहते हैं गाथार्थ – नारक, देव, मनुष्य और तिर्यंचयोनि को प्राप्त हुए जो जीव अपने भव में वर्तमान हैं— उन्हें भवलोक जानो ॥४८॥ Jain Education International आचारवृत्ति - नरक आदि योनि को प्राप्त हुए जीव अपने उस भव में अपनी-अपनी-आयु प्रमाण जीवित रहते हैं । उन जीवों के अपने भवों को या उन जीवों को ही भवलोक कहा है ॥४८॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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