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आवश्यक निर्युक्तिः
यत् दृष्टं संस्थानं द्रव्याणां गुणानां पर्यायाणां च । चिह्नलोकं विजानीहि अनंतजिनदर्शितं ॥४६॥
द्रव्यसंस्थानं धर्माधर्मयोर्लोकाकारेण संस्थानं । कालद्रव्यस्याकाशप्रदेशस्वरूपेण संस्थानं । आकाशस्य केवलज्ञानस्वरूपेण संस्थानं । लोकाकाशस्र्यागृहगुहादिस्वरूपेण संस्थानं । पुद्गलद्रव्यस्य लोकस्वरूपेण संस्थानं द्वीपनदीसागरपर्वतपृथिव्यादिरूपेण संस्थानं । जीवद्रव्यस्य समचतुरस्रन्यग्रोधादिस्वरूपेण संस्थानम् ।
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गुणानां द्रव्याकारेण कृष्णनीलशुक्लादिस्वरूपेण वा संस्थानं । पर्यायाणां दीर्घ ह्रस्ववृत्तत्र्यत्रचतुरस्त्रादिनारकत्वतिर्यक्त्वमनुष्यत्वदेवत्वादिस्वरूपेण संस्थानं । यद्दृष्टं संस्थानं द्रव्याणां गुणानां पर्यायाणां च चिह्नलोकं विजानीहीति ॥४६॥
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आचारवृत्ति --- पहले द्रव्य का संस्थान - आकार बताते हैं । धर्म और अधर्म द्रव्य का लोकाकार से संस्थान है अर्थात् ये दोनों द्रव्य लोकाकाश में व्याप्त होने से लोकाकाश के समान ही आकार वाले हैं । काल द्रव्य का आकाश के एक प्रदेश स्वरूप से आकार है अर्थात् काल द्रव्य असंख्यात हैं । प्रत्येक कालाणु लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर स्थित हैं इसलिए जो एक प्रदेश का आकार है वही कालाणु का आकार है । आकाश का केवलज्ञान स्वरूप से संस्थान है । लोकाकाश का घर, गुफा आदि स्वरूप से संस्थान है ।
पुद्गल द्रव्य का लोकस्वरूप से संस्थान है तथा द्वीप, नदी, सागर, पर्वत और पृथ्वी आदि रूप से संस्थान है । अर्थात् महास्कंध की अपेक्षा पुद्गल द्रव्य का आकार लोकाकाश जैसा है क्योंकि वह महास्कन्ध लोकाकाशव्यापी है तथा अन्य पुद्गल स्कन्ध नदी, द्वीप आदि आकार से स्थित है ।
जीव द्रव्य का समचतुरस्र, न्यग्रोध आदि स्वरूप से संस्थान है अर्थात् नामकर्म के अन्तर्गत संस्थान के समचतुरस्र - संस्थान, न्योग्राध- परिमण्डल, स्वाति, वामन, कुब्जक और हुंडक - ऐसे संस्थान के छह भेद माने हैं । जीव संसार में इन छहों में से किसी एक संस्थान को लेकर ही शरीर धारण करता है तथा मुक्त जीव जिस संस्थान से मुक्त होते हैं, उनके आत्म प्रदेश मुक्तावस्था में उसी आकार के ही रहते हैं । इस प्रकार यहाँ द्रव्यों के संस्थान कहे गये ।
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गुणों के संस्थान को कहते हैं- द्रव्य के आकार से रहना गुणों का संस्थान है अथवा कृष्ण, नील, शुक्ल आदि स्वरूप जो गुण हैं उन रूप से रहना गुणों का संस्थान है । पर्यायों के संस्थान को भी बताते हैं- दीर्घ, ह्रस्व, गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण आदि तथा नारकत्व, तिर्यक्त्व, मनुष्यत्व और देवत्व आदि स्वरूप से आकार होना यह पर्यायों का संस्थान है । अर्थात् दीर्घ, ह्रस्व आदि आकार
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